गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

मेरा अजीब सपना

मुझे एक सपना तीन चार बार आ चुका है ।
मैं  ट्रेन मे बैठकर कहीं जा रहा हुँ...

एक जंगली जगह पर गाडी धीरे धीरे चलते हुए रुक जाता है । गाडी बिलकुल खाली जा रही थी....

उस वोगी में मैं अकेला ही बैठा हुआ था...

मुझे ट्रेन मे हमेशा विंडो सिट् के पास बैठकर बाहर प्रकृति को निहारने मे अछा लगता हे ।

तो मैं विंडो सीट के पास बैठके खिडकी मे से बाहर देखे जा रहा था ....

कि एक सुन्दर कुत्ता मेरे सामने अपने पुंछ हिलाते हुए
मुझे प्यारी नजरों से देखे जा रहा था ....

क्षणभर के लिए
मुझे लगा

मानो वह कुत्ता मेरा पालतु हे
मुझे अपना मालिक समझता है ....

मेरे हाथ मे उस समय
घर से लाए हुए मिठाई था ....

स्नेहवश मैं वह मिठाई उस कुत्ते को देने  के लिए जैसे ही गाडी से निकला वह कुत्ता मुझपर टुटपडा....

वो मेरा भ्रम था कि वह एक कुत्ता था ....

अगले ही पल मैं अपने सपने मे उस कुत्ते को वाघ होते देखता हुँ ....

और खुदको बचाने को गाडी मे चढजाता हुँ.....

.....
हम इसतरह के सपने तभी देखते है जब किसी असमंजस मे फंसे हुए होते है ...
इसमें कोई रहस्य नहीं ...कमसे कम मुझे तो ऐसा ही लगता है

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

भाषाई बिमार

#निकट_दृष्टि_दोष यानी #मायोपिया आँखों कि एक ऐसी बिमारी है....
अगर आपको
हो गया न ......
तो पास के चीज़े ठिकसे दिखते नहीं
मगर दूर स्थित वस्तुएं साफ दिखाई देता है ।

अब ये तो थी आँखों कि एक बीमारी

लेकिन भाषा के मामले में
हमारे भारत में  ज्यादातर
#दक्षिणभारतीय ,#ओडिआ #बंगाली तथा #नर्थइस्ट इंडिया के कुछ अति #माटिमय लोगों को
मायोपिया या निकट दृष्टि दोष से पीडित होते देखा गया है ।

उन्हें
500 या 1000, 2000 किलोमीटर के आसपासवाले एरिया में बोले जा रहे दुनिया का तिसरा विश्वभाषा दिखाई ही नहीं देता ....

हाँ पर
12000 कि.मी से भी कहीं दूर
एक छोटे से टापु में रहनेवाले
#समुद्रीलुटेरों के बर्तमान वंशजों कि
#मातृभाषा बहुतै ही साफ दिख जाता है
😂😂😂😂
और तो ओर
उन लोगों को कभी कभी एक तरह का भाषाई
मिर्गी भी आता है
ये मिर्गी जब आता है वो लोग हिन्दी के खिलाफ
विद्रोह करने लगते है ।
बडे बिमार लोग है भैया 😂😂😂😂

इनमें भी
कुछ एक लोग तो
इतने बडे वाले #मेंटल होते है कि क्या कहुँ....😁😁
हिन्दी से कहीं उनके बच्चै प्रभावित न हो जाय इस डर से उन्हें अंग्रेजी मिडियम में पढाते है और खुद दिनभर
कालावाला झंडा लैके भाषा आंदोलन के नामपर  सहर के रस्तों पर डिस्को डेंस करते पायेजाते है 😀😀😀😀
मेरा सुझाव है
इन क्षेत्रों के #अतिमाटिमय लोगों से
ज़रा बचकै रहिओ वरना
आप उनके #पागलपन दैखके
गहरी मानसिक चोट से
राष्ट्रवाद को ही तिलांजली दे देगें 😁😁😁😁😁😂😂😂😀😀😁

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

कवि कि खामोशी

कवि तेरी कलम कि खामोशी
शायद तेरे दिल के घाव भरगये
या वो संवेदी दिल मरगया....

तु खामोश हे किसी द्वन्द में
उलझा है जीवन कि उलझन में
या साधा कागज से डरगया......

तेरे शब्द हुए क्या अर्थहीन
वक्त के साथ तु हुआ अज्ञान
या दिल में भाव अभाव हुआ......

कवि तु थका तो नहीं है
चुप है क्युं
कलम से श्याही खत्म तो नहीं है
या जग वैरागी हो गया

.....हमारे साइन्स टिचर.....

आज बातों ही बातों मे हमारे साइन्स टिचर याद आ गये....

एकबार एग्जाम् के समय मैं घरमें किसी कारण सबसे झगडा करके बिना खाए ही टेस्ट एग्जाम् देने स्कुल आ गया था .....

ये बात पतानहीं कैसे हमरे साइन्स टिचर प्रमोद मिश्रा जी को पता चलगया था ।

उस दिन मेरा फेवरिट् सबजेक्ट हिस्टरी का पेपर था ...
मैं अपना पेपर देकर लौटरहा था कि आठवीं कक्षा में पढारहे प्रमोद सरने मुझे उधरसे जा रहे देखा ओर पास बुलालिया ।

अब वो फैमस् है अपने 2हातवाले थप्पडों के लिये....
मैं डरता हुआ उनके पास गया इस आशंका से कि आज तो गया कामसे....

मगर प्रमोद सर् तो मस्तिष्क,क्रोध और उससे शरीर में उत्पन होनेवाली कैमिकलस् के बारे में बताने लगे....

उन्होने जो कहा था दूर्भाग्यवश मैने वह सब कहीं लिखके नहीं रखपाया हुँ लेकिन क्रोध भी कितना घातक हो सकता है.....यह बात मनमें बैठगया है ।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

हम हल्दी खोदने गये हमें आलु मिला.......

मोदीजी ने हम प्राइवेट मजदुरों को 2 माह के लिए वेरोजगार बनादिया है ।

खैर इन एज् अफ नोटबंदी एंड कैसलेस में  घर बैठे बैठे जब पिछवाडा पिराने लगा ......

हाथ पैर दर्द करने लगे मनमें विद्रोह के आग जलने लगे कलम क्रान्ती के लिये पुकारने लगा......

तभी हाँ तभी माताजी ने
खेतों से हलदी खोदने का फरमान् जारी कर दिया ।

कहाँ मैं चे गुवारा बनकरकै फेसबुक में क्रान्तिकारी लेख लिखने कि सोच रहा था ओर मुझे मिट्टी खोदने को कह दियागया ।

ये बिलकुल वैसा ही है जैसे रामचन्द्रजी को गंगुधोवीका काम दे देना ।

खैर
वैमन से मैं हथियार उठाए खेत हो लिया ....

एक आद छोटेमोटे खरोच,2 भवंरो के काटने तथा एक काँटा घुसने के बाद हलदी खोदने में मजा आने लगा ........

कठोर पथरिली मिट्टी मे उगाएगये हलदी
बिना टुटेफुटे अक्षत अवस्था मे खोद निकालना भी अपने आप में एक कला है ।

हमारा वो खेत वर्षों से हलदी उगाने के लिए ही इस्तेमाल होता आया है ।

मैं मजे मजे में खोदता गया ओर खोदता गया ......

तिन बस्ता भरजाने के बाद भी मैं खोदै जा रहा था....

मन में आया मैं मिट्टी नहीं फेसवुक में किसी का वाल खोद रहा हुँ .....

दोपहर होने को था
फिर मुझे भुख भी लगने लगा था
मैने खुदाई को ब्रेक देने को सोचा .....

चलो एक आखरीवाला खोद लिया जाए बाकी बचे कल खोदुगें....

तभी
दिन का अन्तिम म्हार खोदते
वक्त एक देशी आलु मिला ......

मारे देशभक्ति के उसे उपर उछाला गया मानो ये वार्ल्डकप हो ओर मैने कोई महत्वपूर्ण विकेट ले लिया हो 😂😂😂😂 तब सहसा भक्तिभाव से हृदय गदगद हो चला .....

मैने उस #भूमिपुत्र को अंतिम प्रणाम पूर्वक जमिन में पुनः गाडदिया ।

विदेशी आलु खा खा कै हमारा दिल से दाल तक सब के सब फरेनर जैसा हो गया है ।

हे महान आत्मा देशी आलु तुम बचे रहो मैं तुम्हे नहीं खाउगाँ .....

तुम याद दिलाने को जीवित रहना धरोहर बनकर कि में मनोज हुँ मार्टिन नहीं......

बुधवार, 28 सितंबर 2016

देहाती तोता

पास के जंगल मे रहनेवाला एक तोता
एकबार गलती से सहर मेँ आ धमका.....
वो तोता
ट्राफिक को चिरकर आगे बढ़ा जा रहा था
कि एक ट्रक
से टकरा कै
रस्ते के एक बाजु
वेहोश हो जा गिरा.....
ट्रक ड्राईवर नया नया ट्रक चला रहा था
उसको इस तोते पर दया आ गयी
तोते को पशुपक्षीओँ के खास मेडिकल मे ट्रिटमेँट कराया गया
और
काफी भागदौडी माथापच्ची के बाद
वो जाकर कै वो बच सका
लेकिन तोता
तब भी वेहोश हि था
और
उसे
उसी अवस्था मेँ पक्षीओँ के लिए बने खास पिँजरे मे रखागया
आखिरकार
तिन दिनोँ बाद
जब तोते को होश आया
वो क्या देखता है
वो तो
स्वयः पिँजरे मेँ कैद है !!!
तोता मन ही मन बुदबुदाया
ओह तेरिकी
ओह नो ! !
मैनेँ ट्रक को टक्कर मार दी थी
न.....
ड्राइवर जरुर मरमरा गया होगा
तभी मुझे जेल हो गया है ।

योद्धा

योद्धा सिर्फ सैनिक ही नहीँ
बाढ़, चक्रवात, अकाल , साहुकारोँ से लढ़नेवाले मेरे कृषक भाई भी है योद्धा ।

योद्धा भी है मेरे मजदूर भाई
उनके मशीन से कुस्ती लढ़ने से
देश कि अर्थनीति को मिलती है
मज़बुती


योद्धा है यहाँ हर वो नागरिक
जिसे देश से हो प्यार
जो देश के लिये जिना जानता है
और मरना भी

योद्धा बस वो नहीँ जिसने बंदुक तलवार के नौक पर
दुनिया तमाम जीत लिया

योद्धा वो भी है
हार कर युद्ध भी जिसने मिठे वोल से ही दिल जीत लिया

एक योद्धा इंसानोँ को मार सकता है
जीवन से सदा
के लिये

एक योद्धा कलमकार है
उसके खाए चोट से
दुशमन जिँते जी मर जाते है


योद्धा एक जाति नहीँ
न है किसी क्षेत्र विशेष के लोगोँ का औदा

योद्धा वे सभी है
हारते नहीँ
जो लढ़ते रहे अन्त तक सदा

सोमवार, 19 सितंबर 2016

नये भुत पुराने भुत

रामहरी दास कुमारपुर गाँव का एक महनती किसान हुआ करता था ।

गर्मीओँ मे एक दिन वो अपने बेटे के साथ
सहर गया हुआ था
लौटते समय उसे
बड़े बड़े लाल आम ठेले पर दिखगये !

उसने 2 किलो आम खरीदा
ओर वाप बेटे घर कि ओर चल पड़े !

आज के तरह उन दिनोँ इतना गाड़ी मोटर तो था नहीँ

चलते चलते बाप बैटे थक हार कर
एक कुँए के पास आकै बैठ गये

थकान मिटाते हुए
वह
बृद्ध कृषक अपने बेटे को कहने
लगा

बेटा मैँ बृद्ध हो चुका हुँ
मुझसे 2गौ (आम) हजम न होगेँ
वरन तु 2 (आम) खा लै
मेरा एक से हो जाएगा

उस कुएँ के अंदर 3 भुत रहते थे

उन्होने पितापुत्र को 3 को खाने कि बातेँ सुनी
उन्हे लगा
ये पितापुत्र निश्चित ही कोई तान्त्रिक है
वो तिनोँ डर के मारे काँपने लगे

अब इससे पहले कि किशान रामहरि कुछ ओर कहपाता
वे कूपवासी तिनोँ भूत
उसके चरणोँ मे गिरकै
दया कि भिक माँगने लगे ।

किशान चालाक तो था ही
वो माज़रा क्या है
तुंरत समझते हुए भुतोँ से बोला

सुनो वे
रोज एक आद भुत न खाएँ
तो हमारे एडीओँ मे दर्द होने लगता है

फिर भी तुम इतना जोऱ दे रहे हो तो ठिक है

मेरे खेतोँ मे तुम्हेँ काम करना होगा
तभी तुम छोड़े जाओगे !

भुत वेचारे क्या करते
मजबुर थे
किशान के मजदूर बनने को राज़ी हो गये ।

ऐसे मेँ कुछ दिन बित गया ।

अब ये तिनोँ भुतोँ के कुछ मित्र भुत हुआ करते थे
जो कि रोज़ रातको
इनसे मिलने आते थे
गप्पे सप्पे होता था
ओर रात बितजाता था

उन नये भुतोँ ने इन तिनो भुतोँ को ढ़ुँडना शुरुकरदिया ।

एक दिन आखिरकार
नये भुतोँ को किशान के खेतोँ मे वे तिनोँ भुत गधा मजदूरी करते
दिख ही गये ।

एक नया भुत पुराने तिनोँ कूपवासी भुतोँ को भड़काने लगा !

क्युँ वे तुम तिनो बड़े बड़े डिँगे हाँकते थे
ओर अब क्या कर रहे हो ?

साला भुतोँ का काम होता है लोगोँ को डराना
और तुम ससुरे पिद्दी बनकै
मुफ्त मे खटरहे हो वे

तब
एक कूपवासी भूत ने
नये भुत कि बात काटते हुए बोला

धीरे बोल वे
अगर किशान जानगया
सालोँ तुम तो मरोगे
ही साथ मे हम भी
उसके निवाला बनेगेँ

ये सुनके नये भुतोँ कि टोली
ठहाके लगाके हँसने
लगे
ओर एक नया भुत हँसते हुए
बोला

ओ अच्छा
तो ये देख मेँ अदृश्य हुआ
देखता हुँ
किशान मेरा क्या कर लेगा ।

किसी कारणवशः कुछ घँटो बाद
किशान अपने बेटे के साथ खेत मे आता है ।

पितापुत्र
खेत से लगे
जामुन के पेड़ के नीचे
जिसके उपर सारे भुत
अदृश्य हो बैठे हुए थे
आकै खड़े होकर
आपसमे बातेँ करने लगे ।

अब
2 दिन पूर्व
किसान ने 2 नये बैल खरिदा था ।
सो उसने अपने बेटे से कहा
सुनो वो पुराने है
उन्हे एक दिन रेस्ट देते है
ये नये है
इनसे एक दिन काम करके
देखते है

अब जामुन के पेड़ मे अदृश्य हो बैठे नये भुत
डर कर किशान के चरणोँ मे आ गिरे

किसान समझगया

ओर बोला
जाओ माफ किया
तुमको

काम पर लगो वे
हारामखोरोँ

:-D :-D :-D :-D

( 25 साल पहले चंदामामा मे प्रकाशित
कहानी सामान्य बदलाव के साथ )

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

People are'nt fake

fb is not real
not real anything here
so why you
just love fb my dear ?

why you
come every hour
in fb !

why you Search
your freinds

liked and coment
her/him posts

when fb is lots of
fake people

so why you send
them freind requests

i think
the real world is just
like fb

people are not fake
not fake thare thoughts

मैं देशद्रोही हो गया.....

जैसे अखलाक
बली चढ़ा धर्म के नाम
देश से बड़ा हो गया था

दीना माँझी लाश उठाए
अपने माटि समाज से
महान हो गये

कल तक
बाढ़ अकाल चक्रवात
ओर
तुम्हारे द्वेष घृणा से लढ़नेवाले

मेँ ,
मेरे Odia भाई बहन 4 करोड़
संवेदनहीन हो गये

दीना कि
एक बिवी क्या मरी
ये माहौल नफरतनुमा हो गया

मैँ बना
उनके नजरोँ मे
अब अलगाववादी

कलतक देशप्रेमी
अब देशद्रोही हो गया

निषाद

मानव मनमेँ एक बहुत ही विषैला तत्व पैदा होता रहता है
#घृणा

ये इतना ताकतवर है कि
धीरे धीरे जेनेटिकाली
मानव जिँस मे
घुस चुका है ।

अब चलिये 4000साल पुराने जमाने मे चलेँ

आर्यावर्त के पूर्वी भागमे कुछ आर्योँ को मछली खाने का शौक पड़ा

वे नाव बनाने कि कला विकशित करने तथा मछली पकड़ने मे
सिद्धहस्त हो गये ।

समुचे आर्यवर्त मे ताम्रलिप्ती का डंका बजने लगा
फिर क्या था
कुछ लोगोँ को ये गलत लगा
उन्होने इन लोगोँ को निषाद नाम दे दिया

कुछ हजार साल बाद इन पापी  अधम लोगोँ पर राज करने के लिए
कुछ क्षत्रिय आए
ओर एक आद संघर्ष के बाद यहीँ के होकर रहगये
फिर वो जब इन लोगोँ के तरफदारी बचाव मे खड़े हुए

केन्द्रिय सत्ता ने इन क्षेत्रियोँ को  एक नाम दे दिया
पतित क्षेत्रिय
जो बादमे
राजा उड्र के नाम से उड्र जाति कहलाया ।

अगले
1000साल मे
आर्यवर्त के हर ग्रंथ महाभारत रामायण मे
ये निषाद लोग हारते रहे कभी
दूर्योधन के हातोँ निषाद कन्याएं
अपमानित हुइ
कभी कर्ण आया निषादोँ को जीत कर लौटा

4थी ईसापूर्व आते आते
निषाद देश पर
नंदराजवंश राजकरता था
अगले
400 साल मे अशोक राजत्व तक
निषादोँ को घृणा द्वेष का पात्र बनाया गया ।

अबतक निषाद पराधीन होते थे
लोकतंत्रिक शासन से अब उनका लगाव कम हो गया था
उन्हे एक शक्तिशाली राजा नायक कि जरुरत हो रहा था

कौन कौन कौन ?
अन्त मे तलाश खत्म हुए ऐर
प्रमुख का पुत्र महामेघवाह खारबेल को शासक बनाया गया

1म सदी मे विखरे पड़े अशोकान साम्राज्य को एक करके
रोमन्स को धूल चटाके
आर्यावर्त को गौरवानित बनाकर
वो सम्राट फिर संत बनगया ।

5वीँ सदी मे फिर एक निषाद का जन्म हुआ
ययाति (जजाति) केशरी
वो हालाँकि पूर्वी आर्यवत को ही एक करपाया ।
उसने 10000 ब्राह्मणगाँव बसाये

और
उन ब्राह्मणोँ ने फिर भारतीय ग्रथोँ मे उत्कलभूमि की तारिफोँ मे छड़ी लगा दीँ 

वक्त बदलता गया

7वीँ सदी से 17वीँ सदी तक के काल मे आए अनगिनत उतार चढ़ाव के बीच
ये निषाद लोग अब
चीन जापान मिशर युरोप मलेशिया इंडोनेशिया मे व्यापार के साथ
धर्म प्रचार पाली संस्कृत भाषा फैला रहे थे ।
बड़े बड़े मंदिर आज भी उन देशोँ मे निषादलोगोँ कि अन्तिम निशानी के तौर पर जिर्णशिर्ण
पड़ा हुआ है ।
बहरहाल
निषादोँ ने विँधाचंल का घमँट तोड़ दिया !
उत्तर पश्चिम पूर्व आर्यावर्त के साथ दक्षिणी भाग के लोगोँ का
वर्षोँ के टुटे रिस्ते फिर जुड़े

निषादोँ कि पराक्रम से कुछ लोग जल भुन कै बैठे हुए थे

क्या करेँ
क्या करेँ
उन्होने एक पुरातन ऋषि का नाम आगे कर दिया

कहने लगे
पापी नीच दुराचारी
अभागे अनार्य
निषाद नहीँ
ये सब एक अकेल

अगस्य ऋषि कि करामात है
वे सागर को पिई गये
विँधाचंल को झुकादिया
उत्तर दक्षिण को एक करदिया
वगैरा वगैराह !

ये द्वेष कहीँ आपके DNA मे तो नहीँ ?

यदि होगा
आप आज भी हम निषादोँ को
सौतेले मानते होगेँ

सालाचमार कहते होगेँ ।

आपको यदि निषादोँ के देशमे कुछ भी अच्छा नहीँ दिखता हो
और आपका दिल चाहता हो
इनकी जमकर बुराई करुँ
समझ लिजिये
आपके DNA मे
ये प्राचीन द्वेष घृणा वाली गुण
आज भी है ।

उदवोधनी

#गंगा धोति थी केश जिसकी
#कृष्णा चरण तल
#श्मशान आज गरीबोँ का देश
यही वो #उत्कल

#लढ़ते थे कभी
#आतताय़ीओँ से
#धन देखकै
जलनेवालोँसे

आज #प्रकृति ही वैरी बनी है
कभी #जलमय मारे
कभी बिन जल

ये कितने #युग कि बात होगी
जऱा याद करना तुम याद करना

#हिमाचल के निचे
खड़े थे ये #जातिवीर
उठाए अपने #माथा
तुम भूला दिए हो वो #गाथा

#कलवर्ग #निजाम बना था
जब #हिन्दु द्वेषी
#गजपति वीर
#कपिलेन्द्र देव
हराए ,चढ़ाए उसको #फाँसी

दुर्वार गड़ #देवर_कोण्डा
गाए आज वही गाथा
#बारबाटी बीर दिए थे वहाँ
अपना उन्नत माथा
  
#याद कर याद करले तु आज
#शतगड़ कि #पवित्र_भूमि को
#अजेय_बंग सैन्य बाहिनी
गिर गये यहाँ
लौटे न अपने #वतन को

विजयी
#विजयनगर मागाँ था
उत्कलके चरणोँ मे जब शरण
बाहामनी पति
यवन राजा
जा छिपा अपने ही घरमे तक्षण

लढ़ा था वीर सुरेन्द्र साए
लढ़े थे चक्राविशोइ
जयीराजगुरु बक्सी कि
धरती आज श्रीहीन
पड़ा है
तब याद न करता कोई

यहीँ जन्मे थे
सुभाष
यह थी श्रीचैतन्य कि कर्मभूमि
श्रीकृष्ण यहाँ जगन्नाथ हुए
ये वही बौध जैनोँ कि भूमि

ब्य़ापारी थे हम
ब्य़ापार करते थे
जाभा बोर्णिओ
चीन जापान से
ये इतिहास भी अब
कोइ नहीँ पढ़ाता
इस देश के शिक्षानुष्ठानोँ मे

गौड़ भुवन हुआ था पदानत
मगध का सूर्य किए थे लीन
न रखना कभी गलतफैमी
इस धरती के पुत्र
न थे न हे कभी किसी से हीन

न उलझों भारत हमसे

मारदिए जाते
कहीँ गर्भ मे कन्या
उस देश के लोग आते है
मेरे माटि के कन्या को
बहू बना
वो अपने देश ले जाते है

जहाँ
वहा था खुन नदी बनकर
लोग हँसते हँसते बलि चढ़गये
न रखा
#भारत तुझसे वैर
हम वो अपमान भी भूला दिए

ये मिट्टी वो मिट्टी है प्यारे
जहाँ जातपात का भेद नहीँ
हम जिँईते है एक झंडे तले
यहाँ दलित सवर्णोँ मेँ रंज नहीँ

कोई CM नहीँ न राजा कोई
यहाँ एक जगन्नाथ ही राजा है
न उलझो हमसे तुम #भारत
हमेँ लढ़ना आता है
हम भूले नही

सह लेगें.....

सहन कर सकता हुँ
किसी के मुख से मेरे लिए
कटु अपशब्द....

सहन हो जाते
कोइ मुझे जितना चाहे
मारे पिटे चाहे
कर दे मेरा बध .....

सहन न होगा
कोइ मेरा घर, परिवार को बदनाम करने लगे....

सह सकता हुँ
तुम मुझे कहो
गर मूर्ख अथवा
संवेदनहीन

सहन न होते
मेरी माँ माटि पर
बेवजह कोइ
उँगली उठाने लगे

सह सकते है
सहने को
हम गरीब
12 Km. चलने का दर्द

सहन न होगा
कोई कह दे
मेरी माँ कि
परवरिश को ही गलत

सह सकते है
झेल सकते है
लाखोँ बाढ़ चक्रवात अकाल
का मार

सह लेगेँ
आए जितनी अड़चने
लड़ेगेँ
मरेगेँ
न डरेगेँ हम वीर ओड़िआ........।

#बन्दे_उत्कल_जननी

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

खुन और जात

जब खुन खुन कि
बात चला
रे खुन बता
तु कौन जात है ?

कई जानवर काटे
अपने अंग काटे
तु न बदला
तेरा एक रंग

तब एक जाति
ये मानवजाति
क्युँ जात धर्म मे बँटगये ?



वो...

वो समझते है कमजोर मुझे
मेरी हिम्मत उन्होनेँ माँपी नहीँ
मैँ तीली सही जब जलता हुँ
जला सकता हुँ साथ गाँव कई

वो समझते है मजबुर मुझे
मेरी हैसियत उनके जैसा नहीँ
मैँ फकीर हुँ उन लकीरोँ का
जिसे मिटा न सके आए गए कई

उन्हे लगा मैँ बेवस लाचार हुँ
मेरे पास देने को कुछ नहीँ
प्यार बाँटे बहुत जगवालोँ मे
अमीर दिल से रहा हुँ मैँ धनी



वो सोचते है मैँ हार गया
उनके एक धमकी से ही डरगया
ये खुन है खंडायत याद रखना
मैँ मर सकता हुँ
कुत्तोँ से डरता नहीँ



गलत और सही

उसने दिखाया मुझे
आईने मे
मेरा ही शक्ल
युँ बौखलाया
जैसे वो मैँ नहीँ
कोई और ही था

वो कोई और ही था
उसे गलतफैमी हो गई
या मैँ ही गलत था
मुझसे गलती हो गई

मैँ कैसे कह दुँ
अपने ही मुँह से
कि मैँ गलत हुँ
मैँ भी ईश्वर कि
सृष्टि हुँ
मैँ गलत तब
वो भी गलत हुआ ।

कोई कैसे कह दे
गलत कौन सही ?
युँ भी कोई कह सके
ऐसा कोई हुआ नहीँ !
कोई हुआ नहीँ
सिबा उसके यहाँ
रब जिसका साथ देँ
बस वही है सही !






-दुसरे खेलोँ मे क्रिकेट हो न हो हर खेल क्रिकेट मे है -


सारे खेलोँ मे से भारतीयोँ को क्रिकेट ही क्युँ सबसे ज्यादा पसंद है ?

इसमेँ ऐसा क्या है ?
जो बाकी विदेशी खेलोँ मे नहीँ है ?
पिछले दिनोँ इन्ही प्रश्नोँ के साथ मेँ कुछ cricket Players and fans से मिला

चलिये जानते है
इसपर क्या था उनका राय ?

Acording to cricket fans
क्रिकेट के बराबर कोई खेल नहीँ
इसमेँ अकेले 6 या 7 खेल होते है
हम ये खेल खेल लेते है
तब बाकी खेलोँ कि जरुरत ही क्या है ?

एक धुँआधार बैट्समैन ने तो यहाँ तक कहदिया
ओसेन वोल्ट को बुलाओ वे
मैँ चौका लगाउँगा वो बॉल पकड़के दिखाए :-D :-D :-D

एक फास बॉलर कहता है

"तुम नहीँ समझोगे भैया
क्रिकेट मे युँ तो चैस भी है"

मैँने पुछा "वो कैसे ?"
कहने लगा
"अरे बकरे को हलाल करने के लिए
हम ऐसे जगहोँ पर खिलाड़ीओँ को व्यवस्थित करते है कि
वो गलती करेगा ही करेगा
जैसे तुम चालाकि से चैस मे मोहरोँ को मार गिराते हो
और मानो तो बॉलिगं नहीँ तो गाँव देहात मे हमारे फास बोलिंग को लोग थ्रोइगं ही तो कहते है ।"

क्या फैँक रहा है :-D :-D :-D

एक स्पिनर से राहा नहीँ गया
वो भी कुद पड़ा
"और और स्पिन के बारे मे क्या
कितना दिमाग लगता है
किसी प्लेयर को आउट करने मे बिलकुल वैसे ही जैसे कोनेवाले गड़्ढे मे तुम कैरम का गोटी डारते हो !!"

एक भूतपूर्व क्रिकेटर बुढ़ऊ ने भी कहा और इतना लम्बा कहा मुझे लगा वो लालकिले से स्पिच दे रहे है :-D :-D :-D

[[खैर उन्होने जो कहा था उसे काटछाँट के बता रहा हुँ]]

तो
बुढ़ऊ कहता है :-
"देखो बेटा
क्रिकेट मे जो है
लंग जम्प हाइ जंप से लैके फुटबॉल रॉग्बी हॉकी ओर पता नहीँ क्या क्या है ।
:-D :-D :-D

जब Catch पकड़ना हो
धोती खुले या अंदर से चड़्डी फटजाए :-D

क्याच पकड़ने वास्ते हम हर आथलेटिक् को पीछे छोड़ देते है ।

और रही बात हॉकि फुटबॉल रॉग्बी जैसे खेलोँ कि
बचुआ ! देख बाल पक गये है मेरे !!

क्या मैँ तुम्हे गधा लगता हुँ ?

ना बेटा ना
हम इत्ते मूरख नहीँ
कि
बॉल को पाँव से मारके
इत्ता मेहनत मसक्कत करेँ
हमारे पास बैट है बैट
एक मारते है सिधा बाउंडरी पार
इ ससुरे एक गोल करने के लिए
घंटो लगादेते है और अपना एक घंटे मे दसिओँ छक्के चौके

और ये जो एक बॉल के पिछे
20 लौँडे दौडते है ....

ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

तुम्हे क्या लगता है बेटा हमारे बच्चे
इतने गिरे हुए है ?
एक बॉल के पिछे
या एक कन्या के पिछे
सारे के सारे दौडेगेँ ?

याद है पिछले वार्ल्डकप मे क्या हुआ था !
उ अपने एक कन्या के पिछे क्या फुटबॉल समझके दौडे थे सारे खिलाड़ी कि
इंडिया हार गया था !
:-( :-( :-(

और जरा देखो तो

अपने देश गरीबोँ का देश है
अपने पास खाने कमाने से वक्त मिलजाए
तो हम शाहरुख सलमान रितिक को देखके टाइम स्प्रेंड करदेते

अब गोरी चमड़ी के पास बहुत पैसा है
वो 12 तरह का खेल खेलेगी ही अपने पास एक हुनर है
हम जुगाड़ु है
इसलिये हमने जुगाड़ लगाया है
सारे खेलोँ मे क्रिकेट हो न हो
हर खेल क्रिकेट मैँ है

So सारे खेलोँ मे वक्त ,धन ,वल खर्चने से अछा हम एक खेल खेलके
इत्ता तो बचत कर लेते है
कि मंगल मे मंगलयान
चंद्र मे चंद्रयान भेज सकेँ !!

मुझे ये सुनके बुढ़ऊ पर गुस्सा आ गया
खैर मैँ अपनी मन कि भावना
मन मेँ रखे
निराशा के साथ
बुढ़ऊ भूतपूर्व क्रिकेटर
से फिर फिर पुछ बैठा

अछा वो सब तो ठिक है सरजी !
यदि क्रिकेट मे इत्ते सारे गुण है
तो ये ओलंपिक वाले क्रिकेट को ओलंपिक मे क्युँ सामिल नहीँ करते ?
आखिर क्या कारण है इसका
इतना सुनना था
बुढ़ऊ सहसा अट्टहास्य करने लगा
ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह

"बेटा अभी तो हमने समझाया क्रिकेट अपने आप मे एक छुटकु ओलोम्पिँक है
अब एक बड़े ओलोंपिक मे
छोटा लेकिन शानदार ओलोम्पिँक कैसे रह सकता है ???
और
इतना सुनना था कि मैँ हँसते हँसते लौटा :-D :-D :-D

बुधवार, 17 अगस्त 2016

जब मुझे बिच्छु ने काटा....

बचपन मे पिताजी के साथ रोज राधामाधव मंदिर (मठ) मे जाया करता था ।
मेरे पिता साल भर ब्राह्मणी नदी तट स्थित शिव मंदिर मे #दुर्दुरा
पुष्प स्थानीय ब्राह्मण पूजारी जी के हातोँ भेजा करते थे ।

हालाँकि साल मे एक बार श्राबण पूर्णिमा को ही वे शिवजी के दर्शन के लिये स्थानीय शिव मंदिरमे जाते
तब मैँ भी उनके साथ हो लेता था ।

बचपन मे श्रीकृष्ण मेरे हिरो थे
मैँ उनकी कथा कहानी संघर्षगाथा सुनकर पढ़कर बड़ा हुआ !

खैर
ये उन दिनोँ कि बात है
मैँ पिताजी के साथ उठकर
पुष्पचयन हेतु 5 बजे भोर जगकर तैयार हो गया

पिताजी नित्यकर्म समापन बाद दुकान कि ओर चलेगए थे
और किसी कारणवश मैँ उनके साथ जा न सका
पिछे रह गया !

मैँ गाँव के रस्तोँ पर दौडता हुआ तेजी से जा रहा था !

अब ज्येष्ठमास मे गर्म वातावरण के वजह से
एक लाल बिच्छु भी अपने ज्ञातिमित्रोँ से भोर मे Good morning कहने को निकला
था

और क्या हुआ !
दौडते हुए मेरा पाँव उस पर पड़गया

डर ,क्रोध या विरक्तिभाव से उसने मेरे चरणोँ मेँ अपना डंक मार दी
मेनका गांधी कहेगी
नहीँ बिच्छु ने तुम्हारे चरण चुमे थे !!

मुझे बिच्छु ने काटा लेकिन
मैँ फिर भी दौडता रहा

और दौडते दौडते पिताजी के पास जा पहँचा
हमने साथ मे फुल तोड़ेँ मंदिर
भी गए
लौटते वक्त
मेरे पाँव लाल वर्ण तथा फुले हुए देखकै मेरी दादी चिल्लाई

तेरे पाँव !
वो इतनी ही कहपायी थी
कि मैने कहा
हाँ चिटी ने काट दिया था शायद
थोड़ा थोड़ा दर्द कर रहा है ।

सभी परिवार जनोँ ने गौर से देखा
और जानगये
ये किसी जहरीले जीव के द्वारा ही संभव है
भला चिटी काटने से ऐसा भी हो सकता है ?

फिर क्या था
जहाँ बिच्छु ने मुझे काटा था
वहाँ तलाशी अभियान चलाया गया !
और आखिरकार एक पत्थर के नीचे से दोषी धर दवोचा गया !

अदालत कि
जज कि तरह बिच्छु को
मृत्युदंड देने का फैसला हुआ
और आखिरी बार जब मैने उसे देखा
वह कढ़ाई मे तला जा रहा था !

उसके शव से मेरी दादी को दर्द का दवा बनाने थे ।

हाँलाकि मैँ फिर भी मंदिर जाता राहा
आखिर
किसी दूर्जन द्वारा वाधित होने पर
मैँ अपने लक्षस्थल से पिछे कैसे हट जाउँ ??


आज भारत आगे बढ़रहा है तरक्की के राह पर है
लेकिन कुछ बिच्छु इसके राहोँ मे उसको काटने को बैचेन हो रहे है
क्या भारत उनसे डर जाएगा

हाँ शायद नहीँ
भारत उनको उनकी औकात जल्द बता देगा



गुरुवार, 4 अगस्त 2016

आजके देशभक्त

अब ईश्क है सिर्फ बिवि से
और बच्चोँ से है लगाव

जात धर्म और ज्ञाती कुटुम्ब के झमेलोँ मे सब
माटी , माँ को भूल गये

अब सुख चैन है धन से ही
धन लाए
धन से खाए
धन उडाए
मौज मनाएँ
धन के लिए
धरती को भी भूल गये

अब सुख के पिछे दौड़ते है
नहीँ देश के लिए मरते है
दो दिन कि देशभक्ति से
देशप्रेमी वे बनगये

मंगलवार, 19 जुलाई 2016

वह कौन लोग है

वह कौन लोग हे
रोज जग मे जो बम् फोड़ते है

वह कौन लोग हे
धर्म के नाम पर देश तोड़ते है

वह कौन लोग हे
बन्दुक के बल आतक फैलाते है

वह कौन लोग हे
नारी का अपमान रोज करते है

वह कौन लोग है
जिनके पूर्वजोँ ने लाखोँ मंदिर तोडे
और एक मसजीद के लिये
अब दिनरात सर फोड़ते है ।

वो कौन लोग है
मुफ्त का मिलता है
तब चट कर जाते
और सेना के जवानोँ पर पथ्थर मारते है (कश्मीरी ) ।

वह कौन लोग है
भारत मे जन्मे
लेकिन अरबीओँ कि खटते है
[अरबी Means -ISIS,BOKOHARAM,अलकाएदा]

गुरुवार, 14 जुलाई 2016

ईद और मेरी आपबीति

आज जिँदेगी मेँ पहली बार एक शान्तिप्रिय मुस्लिम भाई ने
मुझे ईद के मौके पै चौपाती मे सेँवैया दिया ...
अब मैनेँ उसे बाद मे खाउगाँ कहकै रख लिया
और जब वह अपने रुम मे लौट गया
मैँ चुपके से चौपाती को साथ लिए
नजदिक ही पड़ोशी
शम्भु अकबरी (पाटिदार) के यहाँ जा पहँचा
शम्भु को बिना बताए
उसके गाय को चुपके से सेँवैया खिलाने ही वाला था कि
शम्भु ने देख लिया
वो चिल्लाया
वे तु मुल्ला है क्या ?
मेरे गाय को अपने धर्म का बना लेगा ?
मैँ झल्लाया
नहीँ सेठ !
ये मुल्लोँ का सेँवैया कैसा खाऊँ
धर्म हानी होगी !
इसबार
शम्भु
और जोर से गुर्राया !!
तो क्या सहर भर मे कुत्ते बिल्ली कम हो गये थे
जो तुझे मेरी गाय को अशुद्ध करने कि युक्ति सुझी ??
मैनेँ विरक्ति भाव से कहा
यार गलती हो गयी
मैँ भुल गया था
तुम्हारी गाय का भी एक धर्म है !!!
व्यथित मन से मैँ उसके आँगन से निकल ही रहा था कि
आवारा कुत्ता मिल गया !
मैँने वैमन से उसकी ओर चौपाती दिखाते हुए कहा
क्युँ वे सेँवैया खाएगा ?
हाँ तेरा कैसा धर्म .... रोड़पति !!!
अब उसी मुस्लिम भाई के बड़के भैया
मुझे कुत्ते को सेँवैया खिलाते
देख के बहुते नाराज हुए
कहने लगे
का हो मर्दवा
हमार सेँवैया
कुत्ते कै काहे बाँटते फिर रहे है
न खाते मना कर देते
हम किसी ओर के दे देते
मंदी ओर तंगी के समय मे
ऐसा कांड ठिक ना है ।
ला हुल बिलाकुवत् ....
मैँने स्मितहास्य के साथ कहा
ओ इमदाद भैया अरे काहे गुस्सा रहे हो !
अरे मैँ तो इस कुत्ते को सेँवैया
खिलाके
भाईचारा फैला रहा हुँ
ससुरा पहिले मुझे देखते ही भोँकता था
अब देखना
मेरे ईशारोँ पर नाचने लगेगा
अब वेचारे इमदादभाई क्या
समझे
चुपचाप
निकल लिए...

रविवार, 1 मई 2016

अग्निवर्षा

जलते तपते सूर्य कि हो रही अग्नी वर्षा
तरसते जीव जल को
बढ़ा है तृषा

बाबु हो शीतताप नियन्त्रित
कक्ष मे आप
न जानते  ,
न होगा प्राणीओँ का
दर्द का तुम्हे एहसास

तुम्हे लगता होगा
रवि किरण च्युँकि
कनकरंग
सो हितकारी

करो साक्षात क्षण भर
दोपहर
प्रभाकर से
मिटेगा तत्काल हर
भ्रान्ति मनसे
अति मे हित न होइ

झड़ते उड़ते पत्तोँ को 
देखो
पुछो उनसे ,
उनका ये हाल किसने किया !

हराभरा जो
अंग थे कलतक उनके
कौन बाहुबली से
भयभीत हो
वह
पीत्त वर्ण सा हुआ

सुखे तालाबोँ से पुछो
क्युँ आज वे दिख रहे विवर्ण
दम तोड़ते मछली
चिन्तित वगुला
उनका यह हाल
कैसे हुआ किसने किया !

तुम प्रकृति पर कर रहे निरन्तर
जो अत्याचार
हाँ तुम ही हो
इन रौत्रताप के जिम्मेदार !

फिर न कहना किसीसे
इतना सुखा
लु से मौतेँ
ये किसने है किया !
हाँ तुम ही कारक हो
ये तुमने है किया !!

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

मेरी मौत.......

मेरी मौत तुझे मौका दे जाए......
हो बर्बाद मेरी चाहत
तुझे सुकुन मिलजाए.......

में मरुँ तु अमर हो जा
मिले थे चंद फुरसत के पल
वो तु लै जा.....

..
मेरा अन्त तुझे आबाद कर जाय

मेरे आँखों के आँसू
तेरी प्यास बुझा जाय

बचगये है सुख के जितने क्षण....
मुफ्त नहीं है बिरादर
तेरा दर्द दे
मेरा चैन ले जा.........

रविवार, 24 अप्रैल 2016

हिन्दी से प्यार

हिँदी से प्यार बचपन मेँ हीँ हो गया था

तब विवधभारती का JORANDA सेँटर हमारे घर मेँ टिवी होने के बावजुद
रजनी बुआ के यहाँ शुना करते थे ।

मेरे ही तरह
स्कुल के दिनोँ मेँ #RAJUPRADHAN नामसे एक क्लासमेट को  हिँदी गाने शुनने का बड़ा शौक था ।

मुझे याद कभी कभी अतांक्षरी होनेपर वो हिन्दी गाना गाता था तो Sweto mastarji उससे चिढ़ जाते थे ।

उस दौर मेँ RAJU अपने क्लास का इकलौता होरो था जो बलीवुड के गानोँ को पसंद करता हो

बाकी 9th मेँ हिँदी को optional के तौर पर लेनेवाले तीन छात्र SWETO MASTARJI की मार से डर कर हिँदी लिये थे ।

मैनेँ तब हिँदी नहीँ लिया च्युँकि मेरा हिँदी मेँ लिखावट अछा न था
और
RAJU को उसके टपोरी टाईप अदाओँ के लिये SHIV MASTAR नेँ मनाकरदिया था ।

ब्रउनी ने कहा था........

Browni नेँ एकबार कहा था "Not failure but low aim is crime"

"कोशिश करके विफल होना नहीँ वरन कम लक्ष्य होना
अपराध है"

परंतु मुझे लगता है
सत्मार्ग मेँ चलनेवालोँ के लिये
कम लक्ष्य का होना अपराध नहीँ है
सच्चाई का एक मार्ग और लक्ष्य दस गलत राहोँ से बहतर है ।
लक्ष्य कम हो परंतु वह उम्दा व सच्चा हो तो अंत मेँ जीत आप ही की होगी ।

परमात्मा को साक्षी मानकर सच्चे और निश्चल भाव से लक्ष्य निर्धारण किया जाय तो ईश्वर की कृपा से वह अवश्य पूरा होता है ।

तब इस बात का कोई अर्थ नही रह जाता की लक्ष्य बड़ा है या छोटा है ।

गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

पडोसी

"ऐ बाबुमोशाय हम तो रंगमँच की कठपुत्तलियाँ है जिसकी डोर उपरवाले की हाथ मेँ है"

"जबतक जैसे नचाएगा
नाचते रहेगेँ
पर हाँ
जबतक रहेगेँ
पड़ोशीओँ का सुखदुःख फेसबुक पर बाँटते रहेगेँ "

"कभी उनके अहंकार का मजाक बनाकर तो कभी उनके दुःख पर मरहम लगाकर"

"उनके दिखावे और नौटंकी पर हमारा व्यंग्यं घाव पर मिर्ची सा लगे तो तरकारी मेँ तड़का लगे न लगे जीँदेगी मेँ तड़का लग ही जाता है "

"बाकी ये तो सबके सब कुत्ते के दुम है कभी न सुधरनेवाले भला किसीके समझाने भर से क्या समझेगेँ "

ए दिल ऐ दुशमन मेरे

देख लेँ आँख खोलकर
दिल ए दुशमन मेरे ।

नफरत का ये आलाम
जाहाँ मेँ आम बना है ।

छाया है मौत का सामान
दिल और हवा मेँ

जबतब तुझसे
नफरत का पैगाम मिला है

वो तु ही था न जमानेँ से
मुझ पर वार करनेवाला ।

हमनेँ तो अभी अभी
अपना आँख भर खोला है ।

शान्तिदूत बनकर
न सुना अब
तु नयी कहानी ।

ये पाक बंगालादेश सब बताते
तेरी निशानी ।

तुनेँ ही तोड़ा था हिँदोस्थान
बनकर वैगाना ।

और हम ही भरते रहे
वक्त को हरजाना ।

आया है वक्त जान लो
बदलेगेँ अब जमाना ।

न चलनेदेगेँ देश मेँ
देशद्रोहीओँ का घराना ।

नौकर

दुनिया मेँ केवल कृषक हीँ ऐसे है जो स्वतंत्र होकर जीवन निर्वाह करते हे
अर्थात् वे किसी के नौकर नहीँ है न नौकरी करते हे ।

लोग प्रायः नौकरी शब्द का आक्षरीक अर्थ भूलजाते है

हमारे गाँव के एक सज्जन आज मुझपर वार करते हुए बोल पड़े

"तुम केवल पढ़े लिखे हो परंतु नौकरी तो नहीँ की न ! अब पताचला  तुम्हारा हैसियत क्या है ?"

वो जानते थे हमेँ बातोमेँ उलझाना मतलब
अपनी हार को नौता देना जैसी बात होगी

हमनेँ हँसते हुए कहा

"कुछ विज्ञ जन नौकरी शब्द का शाब्दिक अर्थ को भूल गये हे शायद

😀😀😀😀

अरे भाई नौकर + ई मिलकर जब नौकरी शब्द हुई है

इसमेँ भला क्या गौरब की बात है ?"

हम गुलामी को पसंद करनेवाले मानव अपने नौकरी के सपक्ष मेँ अकसर लम्बी लम्बी हाँकते है ।

कुछ भक्त तो खुद को भगवनजी के चाकर या नौकर बताचुके है ।

सच ही तो है

कई गुलामीओँ के जंजिरोँ मेँ जकड़ा हुआ जीव भी धरतीपर ईश्वर के नौकर हीँ तो है ।

वो यहाँ जीवनभर भगवनजी के लिये नौकरी करने के पश्चात

अपने कर्म अनुसार कर्म फल ले कर निकल लेता है

नयी नौकरी के तलाश मेँ ।