गुरुवार, 29 दिसंबर 2016

मेरा अजीब सपना

मुझे एक सपना तीन चार बार आ चुका है ।
मैं  ट्रेन मे बैठकर कहीं जा रहा हुँ...

एक जंगली जगह पर गाडी धीरे धीरे चलते हुए रुक जाता है । गाडी बिलकुल खाली जा रही थी....

उस वोगी में मैं अकेला ही बैठा हुआ था...

मुझे ट्रेन मे हमेशा विंडो सिट् के पास बैठकर बाहर प्रकृति को निहारने मे अछा लगता हे ।

तो मैं विंडो सीट के पास बैठके खिडकी मे से बाहर देखे जा रहा था ....

कि एक सुन्दर कुत्ता मेरे सामने अपने पुंछ हिलाते हुए
मुझे प्यारी नजरों से देखे जा रहा था ....

क्षणभर के लिए
मुझे लगा

मानो वह कुत्ता मेरा पालतु हे
मुझे अपना मालिक समझता है ....

मेरे हाथ मे उस समय
घर से लाए हुए मिठाई था ....

स्नेहवश मैं वह मिठाई उस कुत्ते को देने  के लिए जैसे ही गाडी से निकला वह कुत्ता मुझपर टुटपडा....

वो मेरा भ्रम था कि वह एक कुत्ता था ....

अगले ही पल मैं अपने सपने मे उस कुत्ते को वाघ होते देखता हुँ ....

और खुदको बचाने को गाडी मे चढजाता हुँ.....

.....
हम इसतरह के सपने तभी देखते है जब किसी असमंजस मे फंसे हुए होते है ...
इसमें कोई रहस्य नहीं ...कमसे कम मुझे तो ऐसा ही लगता है

सोमवार, 26 दिसंबर 2016

भाषाई बिमार

#निकट_दृष्टि_दोष यानी #मायोपिया आँखों कि एक ऐसी बिमारी है....
अगर आपको
हो गया न ......
तो पास के चीज़े ठिकसे दिखते नहीं
मगर दूर स्थित वस्तुएं साफ दिखाई देता है ।

अब ये तो थी आँखों कि एक बीमारी

लेकिन भाषा के मामले में
हमारे भारत में  ज्यादातर
#दक्षिणभारतीय ,#ओडिआ #बंगाली तथा #नर्थइस्ट इंडिया के कुछ अति #माटिमय लोगों को
मायोपिया या निकट दृष्टि दोष से पीडित होते देखा गया है ।

उन्हें
500 या 1000, 2000 किलोमीटर के आसपासवाले एरिया में बोले जा रहे दुनिया का तिसरा विश्वभाषा दिखाई ही नहीं देता ....

हाँ पर
12000 कि.मी से भी कहीं दूर
एक छोटे से टापु में रहनेवाले
#समुद्रीलुटेरों के बर्तमान वंशजों कि
#मातृभाषा बहुतै ही साफ दिख जाता है
😂😂😂😂
और तो ओर
उन लोगों को कभी कभी एक तरह का भाषाई
मिर्गी भी आता है
ये मिर्गी जब आता है वो लोग हिन्दी के खिलाफ
विद्रोह करने लगते है ।
बडे बिमार लोग है भैया 😂😂😂😂

इनमें भी
कुछ एक लोग तो
इतने बडे वाले #मेंटल होते है कि क्या कहुँ....😁😁
हिन्दी से कहीं उनके बच्चै प्रभावित न हो जाय इस डर से उन्हें अंग्रेजी मिडियम में पढाते है और खुद दिनभर
कालावाला झंडा लैके भाषा आंदोलन के नामपर  सहर के रस्तों पर डिस्को डेंस करते पायेजाते है 😀😀😀😀
मेरा सुझाव है
इन क्षेत्रों के #अतिमाटिमय लोगों से
ज़रा बचकै रहिओ वरना
आप उनके #पागलपन दैखके
गहरी मानसिक चोट से
राष्ट्रवाद को ही तिलांजली दे देगें 😁😁😁😁😁😂😂😂😀😀😁

शनिवार, 24 दिसंबर 2016

कवि कि खामोशी

कवि तेरी कलम कि खामोशी
शायद तेरे दिल के घाव भरगये
या वो संवेदी दिल मरगया....

तु खामोश हे किसी द्वन्द में
उलझा है जीवन कि उलझन में
या साधा कागज से डरगया......

तेरे शब्द हुए क्या अर्थहीन
वक्त के साथ तु हुआ अज्ञान
या दिल में भाव अभाव हुआ......

कवि तु थका तो नहीं है
चुप है क्युं
कलम से श्याही खत्म तो नहीं है
या जग वैरागी हो गया

.....हमारे साइन्स टिचर.....

आज बातों ही बातों मे हमारे साइन्स टिचर याद आ गये....

एकबार एग्जाम् के समय मैं घरमें किसी कारण सबसे झगडा करके बिना खाए ही टेस्ट एग्जाम् देने स्कुल आ गया था .....

ये बात पतानहीं कैसे हमरे साइन्स टिचर प्रमोद मिश्रा जी को पता चलगया था ।

उस दिन मेरा फेवरिट् सबजेक्ट हिस्टरी का पेपर था ...
मैं अपना पेपर देकर लौटरहा था कि आठवीं कक्षा में पढारहे प्रमोद सरने मुझे उधरसे जा रहे देखा ओर पास बुलालिया ।

अब वो फैमस् है अपने 2हातवाले थप्पडों के लिये....
मैं डरता हुआ उनके पास गया इस आशंका से कि आज तो गया कामसे....

मगर प्रमोद सर् तो मस्तिष्क,क्रोध और उससे शरीर में उत्पन होनेवाली कैमिकलस् के बारे में बताने लगे....

उन्होने जो कहा था दूर्भाग्यवश मैने वह सब कहीं लिखके नहीं रखपाया हुँ लेकिन क्रोध भी कितना घातक हो सकता है.....यह बात मनमें बैठगया है ।

शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

हम हल्दी खोदने गये हमें आलु मिला.......

मोदीजी ने हम प्राइवेट मजदुरों को 2 माह के लिए वेरोजगार बनादिया है ।

खैर इन एज् अफ नोटबंदी एंड कैसलेस में  घर बैठे बैठे जब पिछवाडा पिराने लगा ......

हाथ पैर दर्द करने लगे मनमें विद्रोह के आग जलने लगे कलम क्रान्ती के लिये पुकारने लगा......

तभी हाँ तभी माताजी ने
खेतों से हलदी खोदने का फरमान् जारी कर दिया ।

कहाँ मैं चे गुवारा बनकरकै फेसबुक में क्रान्तिकारी लेख लिखने कि सोच रहा था ओर मुझे मिट्टी खोदने को कह दियागया ।

ये बिलकुल वैसा ही है जैसे रामचन्द्रजी को गंगुधोवीका काम दे देना ।

खैर
वैमन से मैं हथियार उठाए खेत हो लिया ....

एक आद छोटेमोटे खरोच,2 भवंरो के काटने तथा एक काँटा घुसने के बाद हलदी खोदने में मजा आने लगा ........

कठोर पथरिली मिट्टी मे उगाएगये हलदी
बिना टुटेफुटे अक्षत अवस्था मे खोद निकालना भी अपने आप में एक कला है ।

हमारा वो खेत वर्षों से हलदी उगाने के लिए ही इस्तेमाल होता आया है ।

मैं मजे मजे में खोदता गया ओर खोदता गया ......

तिन बस्ता भरजाने के बाद भी मैं खोदै जा रहा था....

मन में आया मैं मिट्टी नहीं फेसवुक में किसी का वाल खोद रहा हुँ .....

दोपहर होने को था
फिर मुझे भुख भी लगने लगा था
मैने खुदाई को ब्रेक देने को सोचा .....

चलो एक आखरीवाला खोद लिया जाए बाकी बचे कल खोदुगें....

तभी
दिन का अन्तिम म्हार खोदते
वक्त एक देशी आलु मिला ......

मारे देशभक्ति के उसे उपर उछाला गया मानो ये वार्ल्डकप हो ओर मैने कोई महत्वपूर्ण विकेट ले लिया हो 😂😂😂😂 तब सहसा भक्तिभाव से हृदय गदगद हो चला .....

मैने उस #भूमिपुत्र को अंतिम प्रणाम पूर्वक जमिन में पुनः गाडदिया ।

विदेशी आलु खा खा कै हमारा दिल से दाल तक सब के सब फरेनर जैसा हो गया है ।

हे महान आत्मा देशी आलु तुम बचे रहो मैं तुम्हे नहीं खाउगाँ .....

तुम याद दिलाने को जीवित रहना धरोहर बनकर कि में मनोज हुँ मार्टिन नहीं......