रविवार, 1 मई 2016

अग्निवर्षा

जलते तपते सूर्य कि हो रही अग्नी वर्षा
तरसते जीव जल को
बढ़ा है तृषा

बाबु हो शीतताप नियन्त्रित
कक्ष मे आप
न जानते  ,
न होगा प्राणीओँ का
दर्द का तुम्हे एहसास

तुम्हे लगता होगा
रवि किरण च्युँकि
कनकरंग
सो हितकारी

करो साक्षात क्षण भर
दोपहर
प्रभाकर से
मिटेगा तत्काल हर
भ्रान्ति मनसे
अति मे हित न होइ

झड़ते उड़ते पत्तोँ को 
देखो
पुछो उनसे ,
उनका ये हाल किसने किया !

हराभरा जो
अंग थे कलतक उनके
कौन बाहुबली से
भयभीत हो
वह
पीत्त वर्ण सा हुआ

सुखे तालाबोँ से पुछो
क्युँ आज वे दिख रहे विवर्ण
दम तोड़ते मछली
चिन्तित वगुला
उनका यह हाल
कैसे हुआ किसने किया !

तुम प्रकृति पर कर रहे निरन्तर
जो अत्याचार
हाँ तुम ही हो
इन रौत्रताप के जिम्मेदार !

फिर न कहना किसीसे
इतना सुखा
लु से मौतेँ
ये किसने है किया !
हाँ तुम ही कारक हो
ये तुमने है किया !!