गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

क्या कर्ण का जन्म कान से हुआ था ?

क्या कर्ण्ण का जन्म कुन्तीजी के कान से हुआ था इसलिए उनका नाम कर्ण रखागया या जन्म के समय कर्ण के कानों में सूर्य प्रदत्त कुण्डल था इसलिए उनका नाम कर्ण हुआ ....

कुछ लोग आम तौर पर कर्ण के नाम पर यह दोनों मत सुनाया करते है
लेकिन क्या यह बात सच है ?

चलिए जानते है इन बातों में कितनी सच्चाई है.....
पुराणों में
कर्ण्ण को कानीन् कहागया है
कान से जन्में इसलिए कानीन् नहीं 😀
दरसल कानीन् शब्द का अर्थ
है वह पुत्र जो अविवाहित माता के गर्भ से जन्में हो....
नियुक्ति=>कन्या+अपत्यार्थे.इन्=कानीन्

हमारे देशज कान शब्द का संस्कृत प्रतिशब्द
है कर्ण्ण...
इसका निरुक्ति=कर्ण्णि धातु(सुनना)+करण.अ
पर
हमारे महाभारत कथा में पात्र
कर्ण के नाम का नियुक्ति
उससे भिन्न है
कृ धातु(करना)+कर्तु.न=कर्ण(नाम)

कृ धातु का 25 से ज्यादा अर्थ है
पर यहां करने के अर्थ में प
प्रयुक्त हुआ है ....

उसी तरह संस्कृत विशेष्य शब्द
न का पांच अर्थों में से
रण व दान यहां ग्रहण योग्य लग रहा है ..

कुल मिलाकर
कृ धातु+कर्तु.न=कर्ण
इस निरुक्ति व्याख्या
यह है
कि जो दानकरे तथा रणप्रिय है
वो कर्ण है......

महाभारत के वनपर्व अंतर्गत कुंडलाहरन पर्व में कर्ण जन्म प्रसंग आता है
वहां कहीं भी नहीं लिखा गया है कि कर्ण का जन्म कान से हुआ था....

वहां  लिखा है ....

ततः कालेन सा गर्भे सुपुवे वरवर्णिनी ।
कनैव तस्य देवस्य प्रसादादमरप्रभम् ।।

(भावार्थ:-तदनन्तर सुन्दरी पृथाके गर्भ से यथा समय सूर्यदेव के कृपा से कन्या रहते हुए ही देवताओं के भांति एक तेजस्वी पुत्र के जन्म हुआ)

इन सब बातों से स्पष्ट होता है कि
राधा पुत्र राधैय का नाम
उनके दानी गुण व रण कौशल में पारंगत होने के बाद कर्ण पडा़ था......

मंगलवार, 14 नवंबर 2017

Children day special;कैसे बच्चे बनगये डॉलफिन

कैलिफोर्निया के
सुमास कवीले में एक दंतकथा है ।
उनका मानना है कि बहुत साल पहले
उनकी देवी हुतास्
चाहती थी कि जो द्वीप में रहते है वो mainland में चलेजाएँ
तो उन्होंने एक पूल बनाया
Rainbow से
सब लोग उस रेनवो को पार कर रहे थे
मैन लैंड कि तरफ जाने के लिए exited थे 
बच्चे उच्छल रहे थे
बहुत मजे़ कररहे थे
नाच रहे थे
अब आप जानते ही होगें
बच्चे कैसे मजे़ करते है
खैर
उन बच्चों में से बहुत से बच्चे
इत्ते उधम मचाने लगे कि
एक दुसरे को
धक्का मुक्की का खेल खेलने लगे
इससे यह हुआ कि बहुत से बच्चे
बीच समंदर में ही गिरने लगे
उनको बचाने के लिए
कोई भी बडा आदमी आगे न आया
च्यूंकि उन्हें डर था की कहीं
इससे उनकी
देवी ह्युतास् उनसे नाराज़ न हो जाय .......
पर हुतास् नें उन्हें बचालिया
उन बच्चों का खेलना
हुतास् को बहुत पसंद आया
तो
उसी पल् जब बच्चे पानी में गिरे
उन्होंने उन बच्चों को डॉल्फिन्स बनादिया
ताकि वो हमेशा हमेशा खेल सके ....

सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

मूर्ति ओर शिल्पकार

एक शिल्पकार हुआ करता था ।
उसे एक दिन एक पत्थर मिला ....
एक बहुत ही खास् पत्थर जो ऐसे ही
कहीं से नहीं मिलता हो ....
ओर तब
वो उसे घर ले आया व महिनों तक
बडे ही ध्यान से
उसपर काम करता रहा...
जबतक कि काम पुरा न हुआ वो
उसपर लगा रहा
उसने ओर कुछ भी नहीं सोचता था
उस समय उसके लिए
एक यही मूर्ति ही अहम थी ओर कुछ नहीं...

जब वो मूर्ति बनकर तैयार हो गयी
उसने वो मूर्ति अपने दोस्तों को दिखाया....
ओर उन्होंने काहा
ये मूर्ति तो सचमें लाजवाब है यार....!

ओर तब उस शिल्पकार ने चाय कि चुस्कियां लेते हुए बडे ही सहजता से
काहा
उसने तो कुछ भी नहीं किया है....
उस पत्थर में तो मूर्ति पहले से ही थीं....
उसने तो बस थोडे बहुत टुकड़े हटाए थे.....

शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

एक दीप नें कहा.....

युं तो दीपावली का त्यौहार चलागया
ओर फिर अगले साल आएगा
लेकिन
बुझाया हुआ एक दीप कहरहा है
कि

“तेरे धुएँ और शोर से घुटघुट कर
मरगयी गालिब !!!!
लोग भूले नहीं मुझे मेरे बदले
मोमवत्ती जलाते है !!”
सारे दुनिया को रौशन करुं
ये ख्वाब था मेरा
और तु मुझे छोड़ अब बम्
फोडता मिलता है .....
मैने सोचा था खुद जलजाऊँ
दुनिया को रौशनी देकर
तुने जलाना ही छोडकर मुझे
बस बमें फोडता हैं.....”

शनिवार, 23 सितंबर 2017

शराब कि कहानी

प्राचीन विश्व में सबसे प्राचीन सभ्यता भारत का ही रहा है....
भारत में ही अन्न के रुप में 10000 साल पहले
सर्वप्रथम जवधान कि खेती हुआ करता था ऐसा वैज्ञानिक कहरहे है...
बहुत संभव भारतीय नारीओं ने
नाना प्रकार के व्यंजनों का उद्भावन किया हो...
शायद वो कोई “आचारप्रिया” नारी ही थी जिसने
“खट्टे फलों” से रस निकाल कर उनके
रस संग्रह के बारे में सोचा था...

ओर शायद किसी ओर नारी के मन में आया होगा
चलो देखते है
सिर्का को आग में तपाने से क्या होता है ????

तो शायद ऐसे ही शराब का उद्भावन हुआ हो

किसे पता......?

यह तो बस एक अनुमान ही है 

लेकिन जैसा कि हम बर्तमान में नारीओं द्वारा
मद्य के प्रति तिरस्कार को देखते है...
हमारे मन में यह शंका उत्पन्न होता है कि आखिर क्यों नारीओं को शराब से इतनी
मानसिक आलर्जी होती है ?
कहीं ये वही प्राचीन नारी कि डिएने का कोडिंग
जेनेटिक प्रतिक्रिया तो नहीं है ?
हो न हो सिर्का को आगमें तपा कर उस प्राचीननारी ने
जब उसे शराब बनाया ओर उसका नकारात्मक प्रभाव देखा उसे स्वभावतः उससे घृणा हो गयी
ओर वह घृणा आजतक नारीओं में दिखाई देता है....
खैर हम इसके बारे में बस अंदाजा ही लगासकते है....

तो चलिए चलते चलते जान लेते है शराब के प्रकार भेद के बारे में......

वैद्य शास्त्र के हिसाब से
मद्य या शराब कई प्रकार के होते है ....

द्र:-

1.→गौडी–(गुड़ व माधुकि फुल से )
2.→पैष्टी–(तंडुल,जौ,गेहुं आदि से )
3.→माध्वी–(मधु तथा अन्य पुष्प रस से)
4.→कादंबरी-(कई प्रकार के रस मिलाकर)
5.→माधुकी–(महुआ के पुष्प से)
6.→मैरेयी–(विल्व वृक्ष के जड़,वेर तथा   
                           शर्करा से)
7.→मार्द्दिक–(द्राक्षा फल  यानी अंगुर से)
                      

                    -सुरा-
सुर यानी देवताओं का पेय होने के कारण
मद्य का एक नाम सुरा कहलाया...
कहते है समुद्रमंथन से देवताओं को सुरा प्राप्त हुआ था......

●मनुसंहिता में सुरा को तीन श्रेणियों में बांटा गया है..●

1.गौडी→(गुड़ व माधुकी पुष्प से )
2.पैष्टी →(तंडुल आदि खाद्यान्नों से)
3.माध्वी→(शहद तथा पुष्प रससे)

  ●--------★मदिरा★---------●
सनातनी पुराणों के मुताबिक
राक्षसों को सागरमंथन से यह नशीली पेय प्राप्त हुआ था....

प्रस्तुतिकरण विधि मुताबिक
मदिरा को दो मुख्य भागों में बांटा जाता है...

1.→★अभिस्रवित★≈(O=अरखी शराब)
जिस तरह के मद्य में तपाते समय उसके फेनयुक्त रसको वकयन्त्र द्वारा संगृहीत किया जाता है ।

2.→★पर्युसित★≈
सिर्का को सढाकर बनाए गये शराब

●●“जटाधार शास्त्र में ”–
12 प्रकार के मदिरा के बारे में बताया गया है....

       
1.→माध्वीक→(शहद तथा पुष्परस)
2.→पानस→(पनस यानी कि कटसल फल से)
3.→द्राक्ष→(अंगूर के रस से)
4.→खर्जुर→(खजुर के रससे)
5.→ताल: →(ताड़ वृक्ष के रससे)
6.ऐक्क्षव→(ईक्क्षु यानी गन्ने के रससे)
7.→मैरेयी→(धायी पुष्प व गुड़ से)
8.→माक्षिक→(एक तरह के मधुमक्खी के शहद से)
9.→टांक→(सोमलता रससे)
10.→मधुक→(महुआ के पुष्प से)
11.→नारीकेलक(नारियल के पैड से)
12.→अन्नविकारोत्थ(कई प्रकार के खाद्यान्न से)

इनमें से ताड़ व खजुर मद्य पर्युसित है ओर बाकी अभिस्रवित प्रस्तुतिकरण विधि से बनाया जाता है....
इसके अलावा क्वाथ से भी एक तरह की मदिरा बनता है जिसे “अरिष्ट” कहाजाता है ।

एक ओर आम मत के हिसाब से...
1.→धान व चावल से बने शराब को सुरा,
2.→जौ से बने शराब को कोहलं
3.→गेहूँ से बने शराब को मधुलिका
4.→मिठे रस से बने शराब को शिधु
5.→गुड़ के शराब को गौडी
6.→द्राक्षा या अंगूर शराब को माधूक कहाजाता है

बहरहाल
सुरा तथा मदिरा दोनों ही मद्य अंतर्गत आते है
दोनों को ही ब्राह्मणों द्वारा सेवन निषिद्ध बताया गया है ।

व्याकरणगत
निरुक्ति नियम देखने पर भी हमें मद्य के
सकारात्मक व नकारात्मक पक्ष दिखाई पडते है....
मद् धातु+णिच+कर्त्तु. य=मद्य
वहीं
मदिरा=मदिर+आ
  ओर मदिर= मद् धातु+कर्त्तु. इर

दोनों ही शब्द में
मूल धातु शब्द मद् धातु ही है.....

ओर इस मद् धातु के कई अर्थ बताये जाते है
जैसे कि...
1.हृष्ठ होना....(स्वास्थ्यवान होना)
2.मत्त होना(मदमत्त, उन्मत्त होना)
3.ज्ञान शून्य होना
4.द्वेष करना....

मद्य चाहें वो सुरा हो या मदिरा....
उसे देवता पिते हो या राक्षस
यदि वह उसे अल्प मात्रा में पान करते है
एक दवा के तरह तो वो हृष्टकारक है
यदि मात्राधिक हुआ तब
व्यक्ति नशाग्रस्त हो मदमत्त,ज्ञानशून्य हो
वहकी वहकी बातें करने लगता है
ओर उनके बारे में बातें ज्यादा ही करता है जिससे वो जलता हो नफरत करता हो ....
ओर यहां हम मद्य को द्वेषबृद्धिकारक तत्व के रुप में देख रहे है....

मद्य के नकारात्मक पक्ष को देखते हुए ही लोगों ने इसका भावनात्मक व्यख्या भी किया है.....
कुछ लोगों के हिसाब से
मद्य=म=>मरण
द=दरिद्र
य=यमगृह गमन....

शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

●इमली ओर नीम कि कथा●


पूर्वभारतीय द्वीपों में एक राजा एकबार भारत घुमने आया था...
उसने यहां ईमली चखा ओर
उससे वो इतना प्रभावित हुआ कि
जाते वक्त भारत से जाहजों में भरभर कर  इमली के बीज ले गया......

उसने उसके देश में
ईमली के पौधे लगाने कि आदेश जारी करदिया...

ईमली के पौधे जब बडे हो गये उसने आदेश जारी करवाया कि मेरे देशके सभी जनता
ईमलीके पत्तों का साग खाएंगे....
ईमली के पेडों के नीचे शयन तथा उपवेष्टन करेंगे..
ईमली के शाखा से मंजन किया करेगें....
ईमली के फल व बीज से तरकारी बनाएगें....

राज आदेशका प्रजा ने आदर सहित पालन किया

परन्तु देखा गया देशमें
लोग बिमार होनेलगे....

वह राजा जो ईमली के माया से नाचरहा था
अब चिंतित रहने लगा....

एक दिन भारत से एक व्यापारी से राजा कि भेंट हुई...

राजा ने अपने राज्य का बुरा हाल उस व्यापारी को कह सुनाया....

भारतीय व्यापारी ने कहा
वो कल अपने देश कलिंग चला जाएगा ओर वहां से लौटते समय
इस समस्या का समाधान लेकर लौटेगा.....

कुछ महिनों बाद
उस
राजाका दरवार लगा था....
तभी वो साधव व्यापारी
राजदरवार में
कुछ पौधे व  अनजाने बीज लेकर हाजिर हुआ....

राजा ने पुछा
यह सब क्या है....?

व्यापारी ने कहा......
यह नीम है.....
इसके पत्ते कडक परंतु औषधीय है...
इसके फल पकने पर मिठे व औषधीय है
इसके काष्ठ,छाले,जड़ भी औषधीय है...
इसके पुष्प को भी आप चाहे तो तरकारी तथा साग बनाकर खा सकते है....
यह वृक्ष छाया  प्रदानकारी भी  है ....

हे राजन ! मेरे देशमें
इस वृक्ष के काष्ठ से निर्मित भगवान पूजें जाते है...

हे राजन !!! यह सभी वृक्ष में श्रेष्ठ मानाजाता है...
आपके देशमें
इस वृक्ष को लगाइये
सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा....

राजा खुस हुआ
उसने उस वृक्ष को समस्त
पूर्वभारतीय द्वीपों मे लगाने का आदेश जारी कियाओर व्यापारी को ससम्मान धनधान्य देकर बिदा किया.....।

रविवार, 10 सितंबर 2017

आमिष~निरामिष

अम धातु+ करण+इष प्रत्यय =आमिष
यह ननभेज्  को संस्कृत तथा ओडिआ मे आमिष कहते है

अम धातु का अर्थ है रुग्ण होना....
जिन खाद्यों को खाने से व्यक्ति रोगी हो जाए वे सब आमिष है ....
जाहिर तौर पर हमारे पूर्वज जानते थे कि मांस मछलीओं में कई तरह के विषाणु मौजूद है
ओर उन्होंने उसका ऐसा नाम दिया
बादमें महिलाओं ने खाद्य पकाने कि विधी तथा अग्नी का आविष्कार किया होगा ओर तब लोगों के दिमागमें मांस को पकाने का ख्याल आया होगा...

लोगों ने मांस को पकाकर खाया ओर उन्होंने देखा कि यह कुछ हदतक सुरक्षित है
फिर उन्होंने उसमें हलदी से दालचीनी तक तरह तरह के  मेडिसिनल द्रव्य मिलाएं ओर आज
हम भारतीय सबसे शुद्ध सुरक्षित पकवान खाते है ।

लेकिन वाहर के देशों में भारतीयों कि भांति देर तक मांस नहीं पकाया जाता
न हीं हमारे जितना मसाला डाला जाता है
उसपर भी ऐसे जीवों को ऐसे देशों में खाया जाता है जो कि भारतीय खाते नहीं
मसलन स्वाइन फ्लू बार्ड फ्लू जैसे बिमारियों का फैलना

ओर
आमिष का विपरीत निरामिष है ..
व्याकरण के हिसाब से जो रोग उत्पन्न करे वो आमिष है......
लेकिन.....
यहाँ
निर्+आमिष =निरामिष बना है .....
यहां निर् प्रत्यय अभाव अर्थ में प्रयुक्त हुआ है....

अर्थात्
जिसमें आमिष नहीं वो निरामिष ...।
वाकी भावुक लोग अपने अपने हिसाब से व्याख्या करते रहते है.......

अब देखा गया है हमारे देश में लोग कुछ ज्यादे ही सेन्सिटिव है....

वो किसी पर भी धार्मिक बंदूक तानकै कहदेते
कि मांस मछली खानेवाले म्लेच्छ है.....
खाते तो ये भी किसी न किसी जीव को ही है लेकिन दोश दूसरों के सर मढने में हमारे देश के लोगों को बडा़ मजा आता है....

लोग कहते है आप जीवहत्या करते हो वो राजसी है या तामसी है सात्विक नहीं
लेकिन यदि
इस हिसाब से देखा जाय तो क्या मानव बीजों को पकाकर उनमें निहित जीवित प्राणी को उसके जन्म से पहले ही नहीं मारा करते ?

यदि संसार में सात्विक भाव ढुंडोगे वो भी आंखे खुले रखकर तो सिबाए मिट्टी ,हवा व जल के कुछ भी न मिलेगा.. .

ओर तो ओर मिट्टी हवा तथा जल में भी शुक्ष्म जीव मौजूद होते है
अतः वैज्ञानिक आधार पर तो इस संसार में सभी एक दुसरेको मारकर काटकर खाके जिंदा है....

असलियत तो यही है कि
कुछ लोग जीवों को खाते है
ओर कुछ बीजों को
हत्या दोनों ओर होता है.......

इसपर कुछ लोग मुंह फुलाए कहेंगे
“बीज़ो ( अन्न ) को खाने से किसी जीव की अकारण हत्या करने का तमस् भाव हृदय में पैदा नहीं होता !
अन्नाहारी के आँगन में फल-फूलों के बाग मिलेंगे ; और माँसाहारी के आँगन में मुर्गों के तबेले !”
😂😂
लेकिन यदि विज्ञान के हिसाब से देखें तो
हृदय में केवल ब्लड शुद्ध होता है 😂

मानव जो क्रिया करता है सब उसके मस्तिष्क के वजह से ....

ओर यदि धर्म ग्रंथमें बीज हत्या पर भी
लोगों को डराने के लिए कुछ लिखागया होता

तो लोगों के मन में संशय ज्ञान उत्पन्न होता
ओर ये संशय ज्ञान बडा़ जहरीला है

इसपर एक काहानी याद आ रहा है.....
एकबार एक अमेरिकी कैदीके साथ एक परिक्षण किया गया....
उसे पहले एक जहरीले साप के बारे में जानकारी दियागया फिर एक व्यक्ति उसके सामने उसी नस्ल का एक सांप लेकर आया.....
उसे बताया गया कि
इसी साप के द्वारा उसे कटवाया जाएगा....
फिर उसके
आखों में पट्टी बांधकर उसे
बिठाया गया
ओर उसे एक अन्य बिनजहरीले साप से कटवाया गया....

व्यक्ति मरगया.....
उसके अंगों में जहर फैल गया था
लेकिन ये जहर उस सांप कि नहीं थी....
उस कैदी के मस्तिष्क ने वह जहर बनाया था....
वो भी सिर्फ डर के कारण.....

तो
प्यारे पाठक
आपका मस्तिष्क ही आपका मित्र है ओर शत्रु भी.....

इसलिए बिना सोचे खाते जाओ
ओर उस खाद्य में शुद्ध अशुभ
आमिष निरामिष न देखना बंधु वरना आपका मस्तिष्क आपकी खाने खाते समय ही उलटी करवा देगा....
😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂

शनिवार, 9 सितंबर 2017

●●●●●अयं कः●●●●

एक अनपढ़ ब्राह्मण पाण्डाजी  थे वो एक दिन मिश्रा जी के यहां गये हुए थे
तभी वहां एक विद्वान पंडित रामेश्वर भारती आये ओर आकर मिश्रा जी से संस्कृत में बतियाने लगे ....
उन्होंने पांडाजीकि ओर उंगली दिखाते हुए मिश्रा जी से पुछा “अयं कः(ये कौन)
मिश्रा जी ने उनको बता दिया
फिर
जब कार्य खत्म हो जानेपर  रामेश्वर भारती जाने लगे पांडाजीने मिश्राजी से पुछा
का हो ! का वोलत रहे भैया ऊ....
“अयं कः” ?
आखिर कार ई अयं कः का क्या मतलब है ?

मिश्रा जी चिढते हुए बोले
बोल दिया सो बोल दिया
अब पुछने से मतलब ?

लेकिन पांडाजी जिद करने लगे सो मिश्रा जी ने
गम्भीर चेहरा बनाते हुए कहा....
ओहो !!!! कित्ता बडा़ गाली दे गये वो....
पता है आपको....?
कैसे पता होगा बोलो
बचपन में पढाई किए नहीं अब का खाक् समझेंगे
चलो जो हुआ सो हुआ
अब बडे आदमी ने बोल ही दिया है तो का कर सकते है भैया ?

पांडाजी के सफेद  आंख तुरंत लाल हो गये
गुस्से में स्वयं पर्शुराम समान रुप धर कर मिश्रा जी को कहने लगे

“मिश्राजी उ पंडित होगा उकरे घर मां' हमें गारी काहे दे रहा था ?”

ओर इत्ता कहके
पांडाजी
रामेश्वर भारती के पिछे दौडते हुए उन्हे कहने लगे

ओ पंडित
तुम अयं कः,तुम्हारा वाप अयं कः ,तुम्हारे सात पुस्ते अयं कः 😜😂🤣🤣🤣

शनिवार, 12 अगस्त 2017

उयालवाड़ा नरसिंह रेड्डी

Uyyalawada Narasimha Reddy
कुर्नूल ज़िले के Koilakuntla में स्थानीय सरदार थे......
नरसिंह रेड्डी ने अपने सेना के साथ ब्रिटिश सेना पर 23 जुलाई 1846 को Giddaluru
में छापा मारा और उन्हें हरा दिया ..............

उसे पकड़ने में असमर्थ, अंग्रेजों ने कदपा में नरसिम्हा रेड्डी के परिवार को कैद कर दिया।

अपने परिवार को मुक्त करने के प्रयास में, नरसिंह रेड्डी नल्लामला वन में चले गए ।

पास के गांव से किसी ने कोइलकुटला के कलेक्टर को उनके बारे में जानकारी दे दिया ।

जब ब्रिटिश ने नलमाला क्षेत्र में सर्चिंग शुरू कर दिया तो नरसिंह रेड्डी कोइलकुंतला क्षेत्र में वापस आ गये  और  जगन्नाथ कोंडा के नजदिक  रामभद्रुनिपल के गांव में छिपे रहे.......

अंततः
एक मुखबिर से उनके ठिकाने और उनके अनुयायियों के​ बारे में ब्रिटिश अधिकारियों
पता चल ही गया.....
रात में सशस्त्र बलों द्वारा अंग्रेजों ने स्वतंत्र सेनानीओं घेर लिया । वह था 6 अक्टूबर 1846 की आधी रात जब उनपर आतर्कित् हमले हुए थे ।
नरसिंह रेड्डी को कोइलकुंटला लाया गया
ओर उन्हें  अपमानित किया गया था ।
वह भारी चेन से बंधे हुए  थे........
कोइलकुंटला की सड़कों पर रक्त के कपड़े पहने उनको सिर्फ​ इसलिए चलाया गया ताकि उनके  खिलाफ फिर कोई विद्रोह करने की हिम्मत न कर सके.......

विद्रोह के नाम पर नारसिंह रेड्डी के साथ 903 लोगों पर आरोप लगाया गया था ।
बाद में 412 लोगों को बरी कर दिया गया और 273 को जमानत पर रिहा किया गया ।
वहीं ​​112 को दोषी ठहराया गया था और 5 से 14 साल के लिए कारावास की सजा सुनाई गई थी.........

कुछ को अंडमान द्वीप समूह में काला पानी की सज़ा सुनाया गया .....
   औक के शासक के छोटे भाई उनमें से एक हैं।

कडप्पा के विशेष आयुक्त ने परीक्षण का आयोजन किया नरसिंह रेड्डी तथा अन्य सभी आरोपों पर बगावत, हत्या और डकैती के आरोप लगाए गए थे ।
उन्हें फांसी से मौत की सजा सुनाई गई थी ।
22 फरवरी 1847 को, कोलीकुंटाला में कलेक्टर  Kokcrane
के उपस्थिति में पास के नदी के तट पर ब्रिटिश द्वारा #उयालवाड़ा_नरसिंह_रेड्डी
को साबके सामने सार्वजनिक फांसी दे दी गया था...
आनेवाले दिनों में आप उनके जीवनी पर एक तेलुगू फिल्म आ रही है जिसमें मुख्य किरदार निभाएंगे टलिवुड के जाने-माने अभिनेता Chiranjeevi ......


क्या देश से नफ़रत करते हो ?

गाते रहते अनेकों प्रेमगीत
किसी प्रेमी के लिये रोज तुम ।

क्युँ गाते नहीं बंदे मातरम्
क्या देश से नफरत करते  हो  ?

याद है गानें बिछडन के
प्यार के मिलन के ईश्वर के.....

क्युँ याद नहीं शहादत वो
युं बन भुलक्कड बैठे  हो ?

पागल हो किसी लडकी के पिछे
कभी देश को न पसंद किया !

इस देश से मिला है सबकुछ तुम्हे
बदले में तुमने क्या दिआ ?

अधिकारों के नारे लगा कर
तुम कर्तव्यों को जो भुले हो ।

ये भ्रष्टाचार तो तुमने फैलाया
तुम सब तो मन के मैले हो !!!!!

सोमवार, 24 जुलाई 2017

६०००० फोटो

दादा साहब फाल्के
अपने पहले फिल्म को लेकरके
महाराष्ट्र के एक गांव में पहुंचे....

वहां के एक जानकार ने बताया
मान्यवर
ये लोग नाच देखने के आदी है
६-७ घंटे के नाटक को ही तबज्जो देंगे
आपके २ घंटे के फिल्म को भला ज्यादा पैसा देकै देखने क्यों आएगें....?

दादासाहेब फाल्के ने गांव वालों को वुलवाया एक सभा बिठाया गया.....

उसमें दादासाहेब नें कहा
ये जो फिल्म है न फ़िल्म
इसमें आपको २.५० घंटे में
५० से ६० हजार फोटो देखनेको मिलेगा......

इसके बाद तो
लोगों ने इसपर काफी इंट्रेस्ट लिया ओर
राजा हरिश्चन्द्र​ देखने भारी संख्या में आने लगे
😀😀😀
एक वो दौर था कि सोचकर ही हैरानी होती है....

(92.7 fm पर एकबार ये घटना अन्नु कपूर सहाब नें सुनाया था)

सोमवार, 17 जुलाई 2017

लॉकी या ऑनलॉकि

काफी पुरानी बात है  ।
एक बहुत ही बुद्धिमान सिपाही था
जिसे राजा से एक घोडा उपहार में मिल गया था.....
ओर सबने कहा
वो कितना लॉकी आदमी है.....
मगर एक दिन उसी घोड़े ने उस सिपाही को
एक ऊंचे जगह से नीचे पटक दिया....
ओर तब उन्हीं लोगों ने कहा कि देखो वो सैनिक कितना unlucky आदमी है.......

फिर वहां एक जंग छिडगयी थी....
सारे लोग मारेगये
लेकिन वो सिपाही बचगया जो जंग में जा न सका.....
च्युंकि उसकी दोनों टांगें ही टुटगयी थी ओर शत्रुओं ने सोचा ये तो ऐसे ही मर जाएगा
इसे क्या मारना....

तो १०० बातों कि बात.....
तुमलोग ये कह  नहीं सकते कि किसका टाइम कब अच्छा चल रहा है या बुरा
हां कयास लगाते रहो
कौन मना करता है......😂😂😂

रविवार, 16 जुलाई 2017

गोरखा शब्द कि सच्चाई

गोरखा=>गोरक्ष से गोरखा शब्द हुआ है ये सच है....

लेकिन संस्कृत पंडितों पहले #गोरक्ष शब्द का अर्थ तो जान लो....
गोरक्ष शब्द #ओडिआ तथा #संस्कृत में प्रयोग होता है....
इसके एक नहीं कई अर्थ है.....
१.शिव
२.एक प्रकारका जंगली निंबु
३.ग्वाल

विशेषण के तौर पर इसका इस्तेमाल ज्यादा होता है
यानी जो गायों का खयाल रखता है वो गोरक्ष.....
अर्थात् सिंपली #ग्वाल.......

जिस
गोरक्षक शब्द को आजकल #फेसबुकिये_प्राणी
बढ़ा-चढ़ाकर
#गायवादी व्यक्तिओं के लिए प्रयोग करते है
उसका प्राचीन अर्थ
ग्वाल ही था........
यानी #गाय_पालक जातिके लिए प्रयोग होता था ...........
अब  #नेपाल के प्राचीन #गोरक्षपुर सहर का नाम गोरक्ष यानी ग्वालों के गोरक्षपुर हुआ जो
आजकल
#खोरखा कहलाता है.....
भारतवर्ष के उत्तर पश्चिम में ग्वालों का बहुत बडा समाज रहा करता था......
जो आज नेपाल भारत में गोर्खा कहलाते हे उनके पूर्वज ग्वाल ही थे ओर वे सब शिव भक्त थे......
शिवजीको वो अपने नाथ यानी गोरक्षों के नाथ मानकर पूजते थे......
शिवजी गोरक्ष कहलाए गोरक्षनाथ भी.......
ओर
इसलिए उस क्षेत्र का नाम गोरक्षपुर कहलाया तथा
इस जगह के नामसे वहां के लोग बाद में #गोरखा कहलाए........

यही सच्चाई है मानो न मानो.....
शब्द सच कहते है लोग नहीं .....

तो कृपया भ्रम न फैलाएं......
ओर आपके जानकारी के लिए बता दुं

भारतके गोरखपुर सहर का नाम संथ  गोरखनाथ के नाम पर प्रशिद्ध हुआ है .....
गोर्खाओं के देवता गोरक्षनाथ से प्रेरित है उनका नाम .....
शिव ही है गोरखनाथ  समझे 😉
(गोरक्ष=शिव)