प्राचीन विश्व में सबसे प्राचीन सभ्यता भारत का ही रहा है....
भारत में ही अन्न के रुप में 10000 साल पहले
सर्वप्रथम जवधान कि खेती हुआ करता था ऐसा वैज्ञानिक कहरहे है...
बहुत संभव भारतीय नारीओं ने
नाना प्रकार के व्यंजनों का उद्भावन किया हो...
शायद वो कोई “आचारप्रिया” नारी ही थी जिसने
“खट्टे फलों” से रस निकाल कर उनके
रस संग्रह के बारे में सोचा था...
ओर शायद किसी ओर नारी के मन में आया होगा
चलो देखते है
सिर्का को आग में तपाने से क्या होता है ????
तो शायद ऐसे ही शराब का उद्भावन हुआ हो
किसे पता......?
यह तो बस एक अनुमान ही है
लेकिन जैसा कि हम बर्तमान में नारीओं द्वारा
मद्य के प्रति तिरस्कार को देखते है...
हमारे मन में यह शंका उत्पन्न होता है कि आखिर क्यों नारीओं को शराब से इतनी
मानसिक आलर्जी होती है ?
कहीं ये वही प्राचीन नारी कि डिएने का कोडिंग
जेनेटिक प्रतिक्रिया तो नहीं है ?
हो न हो सिर्का को आगमें तपा कर उस प्राचीननारी ने
जब उसे शराब बनाया ओर उसका नकारात्मक प्रभाव देखा उसे स्वभावतः उससे घृणा हो गयी
ओर वह घृणा आजतक नारीओं में दिखाई देता है....
खैर हम इसके बारे में बस अंदाजा ही लगासकते है....
तो चलिए चलते चलते जान लेते है शराब के प्रकार भेद के बारे में......
वैद्य शास्त्र के हिसाब से
मद्य या शराब कई प्रकार के होते है ....
द्र:-
1.→गौडी–(गुड़ व माधुकि फुल से )
2.→पैष्टी–(तंडुल,जौ,गेहुं आदि से )
3.→माध्वी–(मधु तथा अन्य पुष्प रस से)
4.→कादंबरी-(कई प्रकार के रस मिलाकर)
5.→माधुकी–(महुआ के पुष्प से)
6.→मैरेयी–(विल्व वृक्ष के जड़,वेर तथा
शर्करा से)
7.→मार्द्दिक–(द्राक्षा फल यानी अंगुर से)
-सुरा-
सुर यानी देवताओं का पेय होने के कारण
मद्य का एक नाम सुरा कहलाया...
कहते है समुद्रमंथन से देवताओं को सुरा प्राप्त हुआ था......
●मनुसंहिता में सुरा को तीन श्रेणियों में बांटा गया है..●
1.गौडी→(गुड़ व माधुकी पुष्प से )
2.पैष्टी →(तंडुल आदि खाद्यान्नों से)
3.माध्वी→(शहद तथा पुष्प रससे)
●--------★मदिरा★---------●
सनातनी पुराणों के मुताबिक
राक्षसों को सागरमंथन से यह नशीली पेय प्राप्त हुआ था....
प्रस्तुतिकरण विधि मुताबिक
मदिरा को दो मुख्य भागों में बांटा जाता है...
1.→★अभिस्रवित★≈(O=अरखी शराब)
जिस तरह के मद्य में तपाते समय उसके फेनयुक्त रसको वकयन्त्र द्वारा संगृहीत किया जाता है ।
2.→★पर्युसित★≈
सिर्का को सढाकर बनाए गये शराब
●●“जटाधार शास्त्र में ”–
12 प्रकार के मदिरा के बारे में बताया गया है....
1.→माध्वीक→(शहद तथा पुष्परस)
2.→पानस→(पनस यानी कि कटसल फल से)
3.→द्राक्ष→(अंगूर के रस से)
4.→खर्जुर→(खजुर के रससे)
5.→ताल: →(ताड़ वृक्ष के रससे)
6.ऐक्क्षव→(ईक्क्षु यानी गन्ने के रससे)
7.→मैरेयी→(धायी पुष्प व गुड़ से)
8.→माक्षिक→(एक तरह के मधुमक्खी के शहद से)
9.→टांक→(सोमलता रससे)
10.→मधुक→(महुआ के पुष्प से)
11.→नारीकेलक(नारियल के पैड से)
12.→अन्नविकारोत्थ(कई प्रकार के खाद्यान्न से)
इनमें से ताड़ व खजुर मद्य पर्युसित है ओर बाकी अभिस्रवित प्रस्तुतिकरण विधि से बनाया जाता है....
इसके अलावा क्वाथ से भी एक तरह की मदिरा बनता है जिसे “अरिष्ट” कहाजाता है ।
एक ओर आम मत के हिसाब से...
1.→धान व चावल से बने शराब को सुरा,
2.→जौ से बने शराब को कोहलं
3.→गेहूँ से बने शराब को मधुलिका
4.→मिठे रस से बने शराब को शिधु
5.→गुड़ के शराब को गौडी
6.→द्राक्षा या अंगूर शराब को माधूक कहाजाता है
बहरहाल
सुरा तथा मदिरा दोनों ही मद्य अंतर्गत आते है
दोनों को ही ब्राह्मणों द्वारा सेवन निषिद्ध बताया गया है ।
व्याकरणगत
निरुक्ति नियम देखने पर भी हमें मद्य के
सकारात्मक व नकारात्मक पक्ष दिखाई पडते है....
मद् धातु+णिच+कर्त्तु. य=मद्य
वहीं
मदिरा=मदिर+आ
ओर मदिर= मद् धातु+कर्त्तु. इर
दोनों ही शब्द में
मूल धातु शब्द मद् धातु ही है.....
ओर इस मद् धातु के कई अर्थ बताये जाते है
जैसे कि...
1.हृष्ठ होना....(स्वास्थ्यवान होना)
2.मत्त होना(मदमत्त, उन्मत्त होना)
3.ज्ञान शून्य होना
4.द्वेष करना....
मद्य चाहें वो सुरा हो या मदिरा....
उसे देवता पिते हो या राक्षस
यदि वह उसे अल्प मात्रा में पान करते है
एक दवा के तरह तो वो हृष्टकारक है
यदि मात्राधिक हुआ तब
व्यक्ति नशाग्रस्त हो मदमत्त,ज्ञानशून्य हो
वहकी वहकी बातें करने लगता है
ओर उनके बारे में बातें ज्यादा ही करता है जिससे वो जलता हो नफरत करता हो ....
ओर यहां हम मद्य को द्वेषबृद्धिकारक तत्व के रुप में देख रहे है....
मद्य के नकारात्मक पक्ष को देखते हुए ही लोगों ने इसका भावनात्मक व्यख्या भी किया है.....
कुछ लोगों के हिसाब से
मद्य=म=>मरण
द=दरिद्र
य=यमगृह गमन....