शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

नयी दुनिया

हाँ मे डरता हुँ च्युँकि
मुझे डरना है इसलिये.....

ये नयी दुनिया आपको जबतब डराने के लिये ही तैयार बैठा है....
हमेशा यही डर लगा रहता है
क्या कलतक मेँ मेरे बच्चे जीवित रह पाएगेँ....
हालाँकि ये दुनिया हमेशा से इतना बेरहम तो नहीँ था....
कितना सुहावना सुंदर था मेरा बचपन और युवाकाल भी.....
परंतु अब वो दुनिया नहीँ रहा...

वो मेरे गाँव और खेत खलियान नयी दुनिया कि क्रोध का शिकार हुए ,...
बड़े छोटे नदी तालावोँ मे पानी की एक बुंद भी नहीँ है ।

इन बुढ़े बेवस आँखोँ को रोज जंगल और वृक्ष कि सपने आते है पर वास्तवता डरावना है......

नकारात्मकता से भरा हुआ
इस नयी दुनिया मेँ कभी खुदको ताकतवर समझनेवाला इसांन आज
जिँने के लिये संग्राम कर रहा है ।
हाँ मे डरता हुँ मुझसे....मेरे जैसोँ के द्वारा बनाये गये इस नयी दुनिया से.....क्युँकि यही हमसबका प्रारब्ध है......
हमने विनाश का ही वीज वोया था और आज हम सब डरे हुए है

हाँ ये हम सबका अंत है.....

[मदन दास
-03.08.2059]