गुरुवार, 27 अगस्त 2015

डायरी का एक पन्ना ...बचपन...

"राही राही सुन ले मेरी कहानी
पावँ ज़मीन पर और मंजिल आसमानी....'
जी..........
ठिक सोच रहे है

ये मेरी अबतक कि कहानी मने
जीवनगाथा...'

1989 जैष्ठ शुक्ल सप्तमी....
अभी अभी तो ये जन्मा है
देखो तो
Kantio गाँव मेँ जन्मा ये मूर्ख बालक आपका अगला पगला दोस्त यार भाई बंधु सखा
Sisir ही है .....क्या कहा पहचान नहीँ पाए ....अरे आप मन कि आँखो से देखिये न जरुर पहचान जायेगेँ....

पर यदि आप इसे एक अछा बालक समझते हो तो आप गलत समझते हो ।

हालांकि ये बच्चा च्युँकि एक वैष्णव के घर मे जन्मा था बड़ा ईश्वर भक्त हुआ करता था
हर सुबह 6 बजे
पिता के साथ बड़े आग्रह के साथ
राधामोहन मंदिर जाया करता ।

सुंदर आचार व्यवहारोँ मेँ इसके गुस्से ,जिद् छुपा नहीँ अपितु और बढ़ने लगा ।

जिद बढ़गये मनु ,देवु ,अजु ,शिशिर आदी नाम धारी ये बालक धीरे धीरे संसारी माया मेँ बंधने लगा !

खिलोनाँ चाहिये
मिठाई चाहिये
चॉकलेट चाहिये
अंगुर चाहिये आदि आदि
मेरी फरमाईशियाँ बढ़ने लगी

मेरे प्यारे माँ वाप भी क्या करते अकेला इकलौता लौँडा,
बचपन कि हर इच्छा पुरी कि.......

धीरे धीरे मेँ हर चीजोँ को पाने के लिये कुछ ज्यादा ही शंजिदा होने लगा
मने रिसिआने लगा समझे....

अब इस संसार सुख मेँ बालपन बितानेवाला इस संसारी भक्त को प्रभु जी याद नहीँ आते थे
वो नित्य खिलौनोँ के साथ खेलता रहा ।
प्रभुजी को दया आ गया....

मेरा भक्त खिलौँने से खेलेगा
ना ना ना....

इसको एक बहन मिलना ही चाहिये

भगवनजी ने मेरे लिये अछा ही सोचकर मेरे लिये बहन भेजा
था

माँ कहती थी शिशिर तेरी बहन को कृष्ण ने दिया है उसे मत शताना ।
अब मेँ ठहरा शैतान
फिर भी प्यारी बहन घर मेँ आयी सो कोई दोस्त मिलगया ।

हम भाई बहन अभी छोटे छोटे ही हुए थे पर हम अब दोस्त कम दुशमन बनगये थे ।

मेँ और वो अलग अलग पार्टी बनाकर घर को संसद भवन समझ लढ़ते थे ।
हम दोनोँ कि लढ़ाई गाँव प्रसिद्ध है......
हर बात पर झगड़ा !!!!
रोज झगड़ोँ से हर कोई परेशान हो गया था ।

भगवान ने देखा उनका भक्त विपदा मेँ है......

प्रभु क्या किया जाय
सोच ही रहे थे कि प्रभु ने तय किया वो अब मुझे एक भाई देगेँ

प्रभुजी के इच्छा से मैने उसका नाम सुधीर रखा

हालाँकि हम भाई बहनोँ मे Worldwar चलता रहा
और तबतक चलता रहा जबतक
-मानीनी- मेरी
इकलौती बहन कि शादी नहीँ हो गयी....














कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें