मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

●●●●संस्कार●●●●


कुछ वक्त का तकाज़ा था
वहाँ बंदरोँ का तमाशा था ।।

नाच न पाये हम ये अपनी
उसुल पर तमाचा था  !!

वो करते रहे हम पर वार
हम सहते रहे मेरे यार ।।

वो बनगये थे जाहिल और
हम मेँ अब भी संस्कार था ।

रविवार, 2 अप्रैल 2017

सबकुछ शिवमय है

#शूद्र

जब मैं अपने दान्त ब्रस कर रहा होता हुँ,स्नान कर रहा होता हुँ
शुद्ध होने कि प्रयत्न कर रहा होता हुँ तब तुम मुझे शूद्र समझना....
जो शुद्ध है वो शूद्र है.....
जिसके तन और मन दोनों ही स्वच्छ हो और
समस्त संसार को साफ सुन्दर रखनेवाला हो
वह शूद्र होता है....
संसार के समस्त बुराईओं को निगल जानूवाला
शूद्र कहलाने लायक है.....
इस हिसाब से भगवान शिव शूद्र है....
च्युंकि समस्त संसार का विष रुपी बुराईओं को अकेले उन्होने ही पान कर लिया था....

संसार में बुराई फैलाना ,जातिवाद फैलाना शूद्र का कार्य नहीं सबको साथ लेकर चलना स्वच्छता का शिक्षा देना उसका कर्त्तव्य बताया गया है.....

#वैश्य

जब मैं जीवन का हिसाब किताब करने लगता हुँ....
कि मेरे जीवन मूल्य क्या है ?
क्या है मेरे लक्ष्य ?
जीवन के हर क्षण का सही इस्तेमाल करना सिख रहा होता हुँ.....
साधो !!!!!!!!!
तुम मुझे वैश्य समझना.....
ओडिआ भागवत में एक पद है.....

"धन संचये चर्म करि
स्वभावे तर नरहरी"

जब मैं धर्म के लिए धन का संचय कर रहा होता हुँ तब मुझे वैश्य कहाजाय......
ओर मानव धर्म होता जनकल्याण ....
जो वैश्य है उसका परम कर्त्तव्य है
वह मानवसेवा रुपी अपने धर्म का पालन करने हेतु धन संचय करे ......और उस धन का इस्तेमाल समाज के हित मैं व्यय करे
तभी उसे वैश्य कहा जाएगा......
इसलिए भगवान शिव वैश्य है......
स्वयं देवादी देव महादेव  होकर भी वे निर्धन सा रुप धारण कि हुए होते है....
च्युंकि उन्होने अपना समस्त शक्ति तथा ज्ञानरुपी धन देवता मानव दानवों में बाँटदिया......
लेकिन उनके पास न तो धन का घंमड शेष बचा न ही दानी होने का अहंकार....

#क्षत्रिय
जब में सत्य के साथ रहकर पाप तथा पापीओं के खिलाफ संखनाद कररहा होता हुँ....
मेरे शरीर के अंतिम रक्तकण बह न जाने तक
मेरा पापीओं के खिलाफ युद्ध जारी रहता है....
जब मैं आततायीओं से साधुओं की रक्षा कर रहा होता हुँ......
जब में
दुसरों के दुःखों को अपना समझकर उनके लिए बिना लाभहानी के चिंता किए
लढता रहता हुँ
जब धर्म कि रक्षा के लिए मेरे हतियार थरथराने लगते है तब.....हाँ....तब तुम मुझे क्षत्रिय समझना.......
तो इस नाते भगवन शिव क्षत्रिय है....
उन्होने विभिन्न युगों में पापीओं के विनाश हेतु 21 अवतार लिया...
कई भयानक राक्षस जो साधुओं के लिए काँटे के समान थे उनका विनाश शिवजी ने किया था.....

#ब्राह्मण

जब मेरे मन मे सात्विक भाव उत्पन होते....
जब मुझे समस्त संसार उसमें रहनेवाले सभी प्राणीओं में ब्रह्म का दर्शन होने लगता है....
जब मैं वसुधैव कुटुम्बकम् यानी समस्त संसार मेरा परिवार मानने लगता हुँ....
देव !!!! तुम मुझे ब्राह्मण समझना......
*ब्रह्मम् जानति इति ब्राह्मण*.....
जो ब्रह्म को जान ले वह ब्राह्मण कहलाएगा....
जिसे जल स्थल आकाश दशों दिशाओं मे ब्रह्म ही ब्रह्म दिखे वही ब्राह्मण है.......
संसार में ब्राह्मण का कर्त्तव्य
ज्ञानार्जन कर उस ज्ञान को समाज के हर वर्ग के योग्य व्यक्तिओं में बांटने को बताया गया है.....
अर्थात् सत् धर्मयुक्त ज्ञानी व्यक्ति ब्राह्मण कहलाने योग्य है.....
अतः आसुतोष सदाशिव ब्राह्मण है....
च्युंकि एक ब्रह्मज्ञानी परम बेत्ता सतपुरुष ब्राह्मण
ही अज्ञान रुपी विष को पचा सकते है....
संसार के प्रत्येक प्राणी निर्जिव को ब्रह्म
समझकर जो उनका दुःख स्वयं पर ले लेता हो
केवल वही ब्राह्मण कहलाने के लायक है

सो हे मानव !!!! स्व जाति को लेकय घमंड न कर.....
च्युंकि समस्त जगत शिवमय है....
तुम्हारा प्रारम्भ शिव से अंत भी शिव में ही हो जाना है....

●●●●●हर हर महादेव शम्भु शंकर●●●●●●

शनिवार, 1 अप्रैल 2017

●●●●शादी मैं ऐसे हुई थी बारातीओं कि कुटाई●●●●

ये करिबन 7 साल पहले कि बात होगी ।
ब्राह्मणी नदी के उस पार पड़ोशी गाँव तेँतुलियापड़ा मेँ एक लड़की की शादी  अचलकोट गाँव [कटक जिल्ला] के एक लौँडे से हो रही थी ।

अब हुआ ये की शादीवाले दिन लौडेँ ने एक्साईमेंट में थोड़ा ज्यादा चढ़ा लिया और गाड़ी ठोक दी ।
हाल़ाकी इससे उसका खास नुकशान न हुआ ,
मामुली खरोच पर पट्टी लगाकर लौंडा शादी के लिये तैयार हो गया । रस्ते मेँ उसके एक दोस्त नेँ उसे कहा

"देखा शादी से पहले एक्सिडेँट हो गया बेटा शादी करने पर कहीँ तेरा राम नाम सत्य न हो जाय "

ये एक मजाक या जोक था
पर लौँडा तो सिरियस हो गया
कहाँ वो सौम्य सुकुमार रुप लेकर शादी करने चला था एकाएक उसमेँ विनाशकारी शिवजी प्रकट हो गये ।

शादी के मंडप मेँ फुल टल्ली होते हुए उसने और ज्यादा दहेज  और गाड़ी माँगना शुरुकरदिया ।
लोग उसे चुप करने गये तो वो अपशब्द या गाली देने लगा ।

लड़कीवालोँ को झुकना था सो वो चुप रहे परंतु लड़की को ये सहन न हुआ और उसने लौडेँसे शादी करने से मना करदिया ।

अब घरवाले परेशान की क्या करेँ ? घर की बदनामी अलग लड़की से अब
शादी कौन करेगा ?

ईतने में
हमारे स्मार्ट सोमुचाचा नें आगे आकर कहा मैं उसका लवर हुँ मैं उससे शादी करुगाँ !

गाँववाले हैरान और खुश थे
शादी हो गया !

इधर अचलकोट गाँव का दुल्ल्हा अपने बारातीओँ को  साथ घर मेँ बँद था या युँ कहेँ कैद था ।

शादी खत्म होने के बाद तेँतुलियापड़ा गाँव के लोगोँ ने उनकी अछी खातिरदारी की और  सोमुचाचा बतारहे थे की दुल्ल्हे को 2 दिन बाद खिला पिला कर पुलिसवाले मामाओँ के साथ उसके गाँव भेजा गया था ! 😂😂😂😂

●●●●अबतक 25●●●●

[[in case you miss it]]
Best note of the year 2014 :-
अबतक 25 😂😂😂

आनेवाले जुन को मेँ 25का हो जाऊँगा । बचपन मेँ इछा करता था कैसे जल्दी जल्दी बड़ा बनजाऊँ ताकि कोई मुझे शता न सके । लेकिन बड़ा बनकर देखा यहाँ तो समाज से लेकर सरकार तक हरकोई शताता हे । बचपन मेँ बो ट्रेलर था हमेँ बताने के लिये कि जीँदेगी मौत के बाद आसान होगी । बचपन मेँ स्कुल जाते वक्त ह्रृदय स्पदंन बढ़जाता था । लगता था जैसे स्कुल का एक एक दिन एक जंग हे और हमेँ जीत दर्ज करना हे । मेँ स्कुली जीवन मेँ एक आम लड़का बना रहा । गणित और अंग्रेजी को मैने हमेशा दुशमन माना और इन्हे पढ़ानेवालोँ के लिये मेरे मन मेँ कोई श्रेष्ठता नहीँ थी । हवा बदलता गया दुनिया बदला मगर आज भी इन दोनोँ से कोई खास लगाव नहीँ हे । स्कुली जीवन ठिकठाक था , मेँ कभी कभी गायक कभी चित्रकार तो कभी अभिनय भी करलिया करता था । हालाकि बहुत कम प्रतियोगिताओँ मेँ मैनेँ भाग लिया हे । दुसरोँ से खुदको छुपाना कोई मेरे बारे मेँ क्या सोचरहा है आदि आदत बनचुका था । पिताजी सोच मेँ पड़गये कि मेरे इस आदत को कैसे बदलेँ ? तभी किसी नेँ कहदिया पासवाले गांव मेँ माईनर स्कुल मेँ नाम लिखवा दो छोरा बदल जावेगा । हम ना ना करते रहे और आखीर मेँ हमेँ हारकर उस स्कुल मेँ जाना पड़ा । यह स्कुल दरसल हमारे पंचायत के चाररस्ते पर था परंतु क्युँ कि हम थे शर्मिले हम मना कर रहे थे और उपर से पांच छह गांव के लड़के पढ़ने आते थे तो हम डर गये थे की हमारी ना जमी तो क्या होगा ? लेकिन यह बदलाव एक तरह से मेरेलिये फायदेमंद रहा । गांव के लड़कोँ मेँ सिर्फ कान्हा ही मेरा अछा दोस्त बना रहा और दुसरे गांव के लड़के अछे दोस्त बनगये । अगले 7 साल यानि कि 12वीँ तक जीवन जैसेतैसे बस चल रहा था । 12वीँ का रिजल्ट खास न था पढ़ने को मन ना था असल मेँ कोलेज हमेँ पसंद न थी । कॉलेज की आवोहवा हमारे लिये फिट नहीँ बैठ रहा था सो हमनेँ छोडदिया । तभी गांव मेँ सुरतवासी श्री राजुभाई जी पधारे । हमेँ पता ना था हमरी तो लगनेवाली हे । माताजी परेशान थी कैसे मुझसे पिछा छुटे ? राजुभाई जी एकदिन घर पधारे लंबे लंबे फेँक रहे थे हम भी जानते थे बांऊसर हे लेकिन छक्का मार ना सके । फिर क्या था ,,, हमेँ छोड़नापड़ा गांव और गांव छोड़कर हम कभी भी खुश न रहे । सुरत वो खुशी कहाँ से देगा जो गांव मेँ होता हे ? गांव मेँ अब तो घुमने पर भी परया परया सा एहसास होता हे । 19साल कि दोस्ती और अपनेपन को 8 साल कि विदेशावास नेँ खत्म करलिया । अब शायद वो फिजां फिर लौटे फिर बो मौसम आये इस जीवन मेँ आगे पतझड़ हि पतझड़ दिखता हे ....

[[इसे आखरीवार February 15, 2014 at 5:01am· मेँ फेसबुक मेँ मेरे द्वारा लिखा गया था]]

वतन प्रेम

प्रेम वतन से इतना है ,

मेरा देश कहता है

धरती को माँ

#भारत माता कि जयकारोँ
से
गुँजते
जन-गण-मन सारा यहाँ

तुम मानते नहीँ हो
अपना इसे

करते रहे हो
बर्बाद इसे

जब वतन से प्यार नहीँ
तेरा यहाँ रहना
हमेँ गवारा नहीँ

#दारुवाले #उल्लु कि #माँ को
एक #फतवा मेरा भी.....

#भरतमाता कि जय