कुछ वक्त का तकाज़ा था वहाँ बंदरोँ का तमाशा था ।।
नाच न पाये हम ये अपनी उसुल पर तमाचा था !!
वो करते रहे हम पर वार हम सहते रहे मेरे यार ।।
वो बनगये थे जाहिल और हम मेँ अब भी संस्कार था ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें