मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

●●●●संस्कार●●●●


कुछ वक्त का तकाज़ा था
वहाँ बंदरोँ का तमाशा था ।।

नाच न पाये हम ये अपनी
उसुल पर तमाचा था  !!

वो करते रहे हम पर वार
हम सहते रहे मेरे यार ।।

वो बनगये थे जाहिल और
हम मेँ अब भी संस्कार था ।

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