मंगलवार, 24 जनवरी 2017

कान् भास् ( मूलरचना-संजीव मिश्र)

आर्धनग्न अर्धसत्य
काक् टस् का कुछ कामना

रुप सजाए वालु शैया मे
आहुतीओं के रौशनीओं मे

वेदध्वनी मन्त्रपाठ शंखनाद
निनादों मे

धू धू जलते यज्ञकुण्डों मे
स्वर्णाभ उन अग्नीसीखाओं मे

श्वेत शान्त एक कान् भास्
दिखे अपना अस्तित्व हराते

चित्रकार के तूलिका स्पर्श से

अतल गर्भ मे

समय के  उस अल्पालोक मे

(मूल ओडिआ कविता का हिन्दी अनुवाद)

मूल कविता संजीव मिश्र ने ओडिआ मे लिखा है जिसका मूल लिपि मे  व लिपान्तरण निचे दिया जा रहा है...

ଅର୍ଧନଗ୍ନ ଅର୍ଧସତ୍ୟ
କାକ୍ ଟସ୍ ର କିଛି କାମନା
अर्धनग्न अर्धसत्य
काक् टस् र किछि कामना
ରୂପସଜାଏ ବାଲୁକା ଶେଯରେ
ଆହୂତୀର ଛାଇ ଆଲୁଅରେ
रुपसजाए बालुका शेयरे
आहूतीर छाइ आलुअरे
ବେଦଧ୍ୱନୀ ମନ୍ତ୍ରପାଠ ଶଂଖନାଦ
ନିନାଦ ଭିତରେ
वेदध्वनी मन्त्रपाठ शंखनाद
निनाद भितरे
ଯଗ୍ୟଁକୁଣ୍ଡ ଧୁ ଧୁ ଜଳେ
ସ୍ୱର୍ଣାଭ ଅଗ୍ନୀର ଶିଖାରେ
यज्ञकुण्ड धु धु जळे
स्वर्णाभ अग्नीर शिखारे
ଶ୍ୱେତ ଶାନ୍ତ କାନ୍ ଭାସ୍ ଟେ
ତା ସତୀତ୍ୱ ହରାଏ
श्वेत शान्त कान् भास् टे
ता सतीत्व हराए
ଚିତ୍ରକର ତୁଳୀର ସ୍ପର୍ଶରେ
चित्रकार तुळीर स्पर्षरे
ଅତଳ ଗର୍ଭରେ
अतळ गर्भरे
ସମୟର ଛାଇ ଆଲୁଅରେ
समयर छाइ आलुअरे......

शनिवार, 14 जनवरी 2017

उल्लु और कौवों मे दुशमनी कैसे हुआ.....

एक था उल्लु ...
वो एक दिन शाम को अपने घोसले से निकलकरके एक छोटी सी डाली पर जा बैठा था ...
कि एक चंचल चपलमति वालकने गुलेल से उसकी ओर एक ठो
मिट्टी का छोटा गोला छोडदिया....
अब वो छोटा सा गोला सिधा
उल्लु के मुंह से होते हुए उसके उदर मे चलगया....
वो वेचारा रातभर चिल्लाता रहा रोता रहा ....
उसकी कौन सुने ...
खैर सुबह को उसने कोयल से पुछा कि इससे छुटकारा पाने के लिए कौनो उपाय बताओ....
कोयल ने कहा मेरा  सौतेला भाई कौवा बडा बुद्धिमान है शायद वह कोई हल निकल ले...पर फिस लगेगी हां....
मरता क्या न करता ...
उल्लु राजी होगा ही होगा....
कोयल व उल्लु कौवे के पास गये...
कौवे ने उल्लु को कहा तुम्हारी
बिमारी ठिककरने के लिए एकच उपाय है....

उस दुष्ट वालक ने तुम्हारे उदर मे गुलेल  के जरिए छोटा सा एक मिट्टी का गोला दे मारा है
तो तुम जाओ ...

पासवाले पर्वत के उपर एक छोटा सा गड्ढा है उसमें सदा शीतल जल मिलता है...

तुम उसमें गले तक डुबे रहना...
कुछ ही मिन्टों मे तुम्हारे पेट का गोला गल् जाएगा....

उल्लु ने वैसा ही किया और वह स्वस्थ भी हो गया..

अब जब कौवा ने उल्लु को अपना फिस् मांगा वो मुकर गया....
कहने लगा अबे इसमें नया क्या है...
इ तो हमें भी पता था....
हम तो फिस ना देगें तुमने क्या नया करदिया...
कहते है तबसे कौवा उल्लु को देखते ही उसको मारने को दौडता है....

शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

अवहित्थ

संस्कृत मे एक शब्द है
#अवहित्थ....
शास्त्रों के हिसाब से
33 व्यभिचारों मे से एक ये भी है.....

अवहित्थ कि अवस्था को प्राप्त होनेवाले व्यक्ति
उनके मन मे हो रहे उथलपुथल को किसी के आगे प्रकट नहीं करना चाहते.....

किसी घटना को लेकरके
मन मे भय ,लज्या,अहंकार से जन्में क्रोध को छिपने के लिए
लोग जब बात बदलना चाहें...

प्रसंगान्तर वार्तालाप करनेलगे
....कुटिल हास्य पदर्शन...
अथवा परिहास करने लगे...
उनके द्वारा किएगये ऐसे बर्ताप
को अवहित्थ करना कहाजाता है....

हिमालय पुत्री पार्वती के समक्ष
नारदमुनी
पर्वतराज हिमालय के आगे
शिवजी का गुणगान कररहे थे .....
उन्होंने जब देवी पार्वती के साथ शिवजी का पाणिग्रहण प्रस्ताव रखा ...
और तब
लज्यावश देवी पार्वती कमल पुष्प के
पंखुडीओं को लज्यावश यह दिखाने को गिनने लगी कि उन्हें तो विवाह के बारे मे कच्छु पता इच नहीं...........

शनिवार, 7 जनवरी 2017

मालती माधव

आठवीं सदी के संस्कृत कवि भवभुति ने एक
काव्यमय नाटक लिखा ...#मालतीमाधव.....
अब च्युंकि इस नाटक के विषयवस्तु पूर्णतः काल्पनिक प्रेम प्रसंग को लेकरके लिखा गया था......

उस समय के विद्वानों न कविे भवभुति कि नाटक को उतना तबज्जौ न देते उनका मजाक बनाया.....

और तब
उनलोगों के लिए कवि भवभुति ने
नाटक के प्रारम्भ मे ही एक श्लोक जोडदिया.....

■■■
ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यबज्ञां जाननन्तुते
किमपि तान प्रतिनैष यत्नः ।
उपस्थ्यतोस्ति समकोपि समानधर्मा कालोह्यय़ं
निरवधि विर्पुलाच पृथ्वी ।।■■■

"जो लोग इस ग्रन्थ के लिए मुझे अवज्ञा सूचक
बात कहना चाहेंगे मैं उन्हें बता दुँ यह ग्रन्थ मैने उनके लिए नहीं लिखा हे.....
काल या समय का कोई अन्त नहीं और यह विश्व बहुत विशाल हे...
अतः मेरे समकालीन, समधर्मी कोई  व्यक्ति
बर्तमान मे है अथवा परवर्त्ती समय मे जन्म लेगें
मेरे सारे श्रम उनके लिए है"

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क्या है कहानी ?.......

विदर्भदेश के कुण्डिनपुर नामक राज्य के राजा के 2 मन्त्री देवरात व भुरिवसु ने उनके विवाह पूर्व ही सत्य करलिया था कि
उनके पुत्र पुत्री का परस्परमे विवाह करदेगें...
भविष्य मे
देवरात का माधव नामसे पुत्र तथा भुरिवसु को मालती नाम्नी कन्यारत्न कि प्राप्ती हुई ।
मालती कि सुन्दरता दिनप्रतिदिन बढता चलागया ओर इसबीच कुण्डिनपुर नरेश के एक युवा मन्त्री नन्दन को मालती से एकतरफा प्रेम हौ गया....
नन्दन ने राजा के सामने राजसभा मे ही भुरिवसु से मालती का हाथ माँगलिआ
और राज ने स्वयं भी भुरिवसु को अनोरध किया.....

भुरिवसु व उनकी पत्नी पद्मावती को एक तरफ राजकोप से भय था तो वहीं दुसरी ओर
वचनभंग पाप से वो ततोधिक भयभीत थे....

इस बीच राज्य मे एक वुद्धिमती विदेशी महिला कामन्दकी का आगमन हुआ ....
भुरिवसु ने परस्परको घृणा करनेवाले मालती व माधव को
एक करने का कार्य कामन्दकी को सोंपा ओर उधर स्वयं नन्दन से मालती के विवाह आयोजन मे जुटगये.....
कई प्रयत्नो के बाद एक अकस्मात दुर्घटना से दोनों को एक दुसरे से प्रेम हो गया....
.....
नन्दन से मालती का विवाह
दिनांक समीप आनेपर कामन्दकी के कुट कौशल से प्रेम का जीत होता है.....
माधव मालती का विवाह राज आज्ञा से सम्पन्न होता है

यह है इस नाटक कि मुल विषयवस्तु.....

मंगलवार, 3 जनवरी 2017

स्वतंत्रता दिवस कि यादें

जब मैं छोटा था....
राष्ट्रीय दिवस उपलक्ष मे हम सब स्कुल के बच्चे गांव परिक्रमा कररहे थे ....

तभी एक साँड़ हमारे बन्दे मातरम् के
जयघोष से भडक् गया...

शायद पूर्व जनम् मे कोई अंग्रेज होगा 😀😀😀
खैर ..

मैं लाल कपडा पहना हुआ था..
मुझे हमारे अमर सर ने छडी से मारते हुए सर्ट उतारने को कहा ....

मैने कहा नहीं....

लाल नहीं झुकेगा...

यहाँ बात इज्जत कि हे !!!!!!

पुरे स्कुल के  सामने तो नहीं...
आप लोग जिंदावाद जिंदावाद करो
मैं तो चला
साइडवाली गली से अपने वार्ड मे.....
😀😀😀

एक दिन बाद् सरजी मेरी कंप्लेन करने घर आए थे
कि लडका बात नहीं मानता...
समझाओ...
कसमसे उसदिन अगर ये पता होता कि लाल कपडों से
साँड़ का कौनो लेनादेना नहीं उस टिचर की तो मैं...... 😬😬😬😬

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सांड व्यक्ति के भडकाऊ हावभाव के लिए उनपर हमले करदेते है न कि खास कलॉर के कपडों के वजह से.....
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