संस्कृत मे एक शब्द है
#अवहित्थ....
शास्त्रों के हिसाब से
33 व्यभिचारों मे से एक ये भी है.....
अवहित्थ कि अवस्था को प्राप्त होनेवाले व्यक्ति
उनके मन मे हो रहे उथलपुथल को किसी के आगे प्रकट नहीं करना चाहते.....
किसी घटना को लेकरके
मन मे भय ,लज्या,अहंकार से जन्में क्रोध को छिपने के लिए
लोग जब बात बदलना चाहें...
प्रसंगान्तर वार्तालाप करनेलगे
....कुटिल हास्य पदर्शन...
अथवा परिहास करने लगे...
उनके द्वारा किएगये ऐसे बर्ताप
को अवहित्थ करना कहाजाता है....
हिमालय पुत्री पार्वती के समक्ष
नारदमुनी
पर्वतराज हिमालय के आगे
शिवजी का गुणगान कररहे थे .....
उन्होंने जब देवी पार्वती के साथ शिवजी का पाणिग्रहण प्रस्ताव रखा ...
और तब
लज्यावश देवी पार्वती कमल पुष्प के
पंखुडीओं को लज्यावश यह दिखाने को गिनने लगी कि उन्हें तो विवाह के बारे मे कच्छु पता इच नहीं...........
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