शुक्रवार, 15 सितंबर 2017

●इमली ओर नीम कि कथा●


पूर्वभारतीय द्वीपों में एक राजा एकबार भारत घुमने आया था...
उसने यहां ईमली चखा ओर
उससे वो इतना प्रभावित हुआ कि
जाते वक्त भारत से जाहजों में भरभर कर  इमली के बीज ले गया......

उसने उसके देश में
ईमली के पौधे लगाने कि आदेश जारी करदिया...

ईमली के पौधे जब बडे हो गये उसने आदेश जारी करवाया कि मेरे देशके सभी जनता
ईमलीके पत्तों का साग खाएंगे....
ईमली के पेडों के नीचे शयन तथा उपवेष्टन करेंगे..
ईमली के शाखा से मंजन किया करेगें....
ईमली के फल व बीज से तरकारी बनाएगें....

राज आदेशका प्रजा ने आदर सहित पालन किया

परन्तु देखा गया देशमें
लोग बिमार होनेलगे....

वह राजा जो ईमली के माया से नाचरहा था
अब चिंतित रहने लगा....

एक दिन भारत से एक व्यापारी से राजा कि भेंट हुई...

राजा ने अपने राज्य का बुरा हाल उस व्यापारी को कह सुनाया....

भारतीय व्यापारी ने कहा
वो कल अपने देश कलिंग चला जाएगा ओर वहां से लौटते समय
इस समस्या का समाधान लेकर लौटेगा.....

कुछ महिनों बाद
उस
राजाका दरवार लगा था....
तभी वो साधव व्यापारी
राजदरवार में
कुछ पौधे व  अनजाने बीज लेकर हाजिर हुआ....

राजा ने पुछा
यह सब क्या है....?

व्यापारी ने कहा......
यह नीम है.....
इसके पत्ते कडक परंतु औषधीय है...
इसके फल पकने पर मिठे व औषधीय है
इसके काष्ठ,छाले,जड़ भी औषधीय है...
इसके पुष्प को भी आप चाहे तो तरकारी तथा साग बनाकर खा सकते है....
यह वृक्ष छाया  प्रदानकारी भी  है ....

हे राजन ! मेरे देशमें
इस वृक्ष के काष्ठ से निर्मित भगवान पूजें जाते है...

हे राजन !!! यह सभी वृक्ष में श्रेष्ठ मानाजाता है...
आपके देशमें
इस वृक्ष को लगाइये
सभी समस्याओं का समाधान हो जाएगा....

राजा खुस हुआ
उसने उस वृक्ष को समस्त
पूर्वभारतीय द्वीपों मे लगाने का आदेश जारी कियाओर व्यापारी को ससम्मान धनधान्य देकर बिदा किया.....।

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