रविवार, 10 सितंबर 2017

आमिष~निरामिष

अम धातु+ करण+इष प्रत्यय =आमिष
यह ननभेज्  को संस्कृत तथा ओडिआ मे आमिष कहते है

अम धातु का अर्थ है रुग्ण होना....
जिन खाद्यों को खाने से व्यक्ति रोगी हो जाए वे सब आमिष है ....
जाहिर तौर पर हमारे पूर्वज जानते थे कि मांस मछलीओं में कई तरह के विषाणु मौजूद है
ओर उन्होंने उसका ऐसा नाम दिया
बादमें महिलाओं ने खाद्य पकाने कि विधी तथा अग्नी का आविष्कार किया होगा ओर तब लोगों के दिमागमें मांस को पकाने का ख्याल आया होगा...

लोगों ने मांस को पकाकर खाया ओर उन्होंने देखा कि यह कुछ हदतक सुरक्षित है
फिर उन्होंने उसमें हलदी से दालचीनी तक तरह तरह के  मेडिसिनल द्रव्य मिलाएं ओर आज
हम भारतीय सबसे शुद्ध सुरक्षित पकवान खाते है ।

लेकिन वाहर के देशों में भारतीयों कि भांति देर तक मांस नहीं पकाया जाता
न हीं हमारे जितना मसाला डाला जाता है
उसपर भी ऐसे जीवों को ऐसे देशों में खाया जाता है जो कि भारतीय खाते नहीं
मसलन स्वाइन फ्लू बार्ड फ्लू जैसे बिमारियों का फैलना

ओर
आमिष का विपरीत निरामिष है ..
व्याकरण के हिसाब से जो रोग उत्पन्न करे वो आमिष है......
लेकिन.....
यहाँ
निर्+आमिष =निरामिष बना है .....
यहां निर् प्रत्यय अभाव अर्थ में प्रयुक्त हुआ है....

अर्थात्
जिसमें आमिष नहीं वो निरामिष ...।
वाकी भावुक लोग अपने अपने हिसाब से व्याख्या करते रहते है.......

अब देखा गया है हमारे देश में लोग कुछ ज्यादे ही सेन्सिटिव है....

वो किसी पर भी धार्मिक बंदूक तानकै कहदेते
कि मांस मछली खानेवाले म्लेच्छ है.....
खाते तो ये भी किसी न किसी जीव को ही है लेकिन दोश दूसरों के सर मढने में हमारे देश के लोगों को बडा़ मजा आता है....

लोग कहते है आप जीवहत्या करते हो वो राजसी है या तामसी है सात्विक नहीं
लेकिन यदि
इस हिसाब से देखा जाय तो क्या मानव बीजों को पकाकर उनमें निहित जीवित प्राणी को उसके जन्म से पहले ही नहीं मारा करते ?

यदि संसार में सात्विक भाव ढुंडोगे वो भी आंखे खुले रखकर तो सिबाए मिट्टी ,हवा व जल के कुछ भी न मिलेगा.. .

ओर तो ओर मिट्टी हवा तथा जल में भी शुक्ष्म जीव मौजूद होते है
अतः वैज्ञानिक आधार पर तो इस संसार में सभी एक दुसरेको मारकर काटकर खाके जिंदा है....

असलियत तो यही है कि
कुछ लोग जीवों को खाते है
ओर कुछ बीजों को
हत्या दोनों ओर होता है.......

इसपर कुछ लोग मुंह फुलाए कहेंगे
“बीज़ो ( अन्न ) को खाने से किसी जीव की अकारण हत्या करने का तमस् भाव हृदय में पैदा नहीं होता !
अन्नाहारी के आँगन में फल-फूलों के बाग मिलेंगे ; और माँसाहारी के आँगन में मुर्गों के तबेले !”
😂😂
लेकिन यदि विज्ञान के हिसाब से देखें तो
हृदय में केवल ब्लड शुद्ध होता है 😂

मानव जो क्रिया करता है सब उसके मस्तिष्क के वजह से ....

ओर यदि धर्म ग्रंथमें बीज हत्या पर भी
लोगों को डराने के लिए कुछ लिखागया होता

तो लोगों के मन में संशय ज्ञान उत्पन्न होता
ओर ये संशय ज्ञान बडा़ जहरीला है

इसपर एक काहानी याद आ रहा है.....
एकबार एक अमेरिकी कैदीके साथ एक परिक्षण किया गया....
उसे पहले एक जहरीले साप के बारे में जानकारी दियागया फिर एक व्यक्ति उसके सामने उसी नस्ल का एक सांप लेकर आया.....
उसे बताया गया कि
इसी साप के द्वारा उसे कटवाया जाएगा....
फिर उसके
आखों में पट्टी बांधकर उसे
बिठाया गया
ओर उसे एक अन्य बिनजहरीले साप से कटवाया गया....

व्यक्ति मरगया.....
उसके अंगों में जहर फैल गया था
लेकिन ये जहर उस सांप कि नहीं थी....
उस कैदी के मस्तिष्क ने वह जहर बनाया था....
वो भी सिर्फ डर के कारण.....

तो
प्यारे पाठक
आपका मस्तिष्क ही आपका मित्र है ओर शत्रु भी.....

इसलिए बिना सोचे खाते जाओ
ओर उस खाद्य में शुद्ध अशुभ
आमिष निरामिष न देखना बंधु वरना आपका मस्तिष्क आपकी खाने खाते समय ही उलटी करवा देगा....
😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂😂

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