एक शिल्पकार हुआ करता था ।
उसे एक दिन एक पत्थर मिला ....
एक बहुत ही खास् पत्थर जो ऐसे ही
कहीं से नहीं मिलता हो ....
ओर तब
वो उसे घर ले आया व महिनों तक
बडे ही ध्यान से
उसपर काम करता रहा...
जबतक कि काम पुरा न हुआ वो
उसपर लगा रहा
उसने ओर कुछ भी नहीं सोचता था
उस समय उसके लिए
एक यही मूर्ति ही अहम थी ओर कुछ नहीं...
जब वो मूर्ति बनकर तैयार हो गयी
उसने वो मूर्ति अपने दोस्तों को दिखाया....
ओर उन्होंने काहा
ये मूर्ति तो सचमें लाजवाब है यार....!
ओर तब उस शिल्पकार ने चाय कि चुस्कियां लेते हुए बडे ही सहजता से
काहा
उसने तो कुछ भी नहीं किया है....
उस पत्थर में तो मूर्ति पहले से ही थीं....
उसने तो बस थोडे बहुत टुकड़े हटाए थे.....