सोमवार, 23 अक्तूबर 2017

मूर्ति ओर शिल्पकार

एक शिल्पकार हुआ करता था ।
उसे एक दिन एक पत्थर मिला ....
एक बहुत ही खास् पत्थर जो ऐसे ही
कहीं से नहीं मिलता हो ....
ओर तब
वो उसे घर ले आया व महिनों तक
बडे ही ध्यान से
उसपर काम करता रहा...
जबतक कि काम पुरा न हुआ वो
उसपर लगा रहा
उसने ओर कुछ भी नहीं सोचता था
उस समय उसके लिए
एक यही मूर्ति ही अहम थी ओर कुछ नहीं...

जब वो मूर्ति बनकर तैयार हो गयी
उसने वो मूर्ति अपने दोस्तों को दिखाया....
ओर उन्होंने काहा
ये मूर्ति तो सचमें लाजवाब है यार....!

ओर तब उस शिल्पकार ने चाय कि चुस्कियां लेते हुए बडे ही सहजता से
काहा
उसने तो कुछ भी नहीं किया है....
उस पत्थर में तो मूर्ति पहले से ही थीं....
उसने तो बस थोडे बहुत टुकड़े हटाए थे.....

शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

एक दीप नें कहा.....

युं तो दीपावली का त्यौहार चलागया
ओर फिर अगले साल आएगा
लेकिन
बुझाया हुआ एक दीप कहरहा है
कि

“तेरे धुएँ और शोर से घुटघुट कर
मरगयी गालिब !!!!
लोग भूले नहीं मुझे मेरे बदले
मोमवत्ती जलाते है !!”
सारे दुनिया को रौशन करुं
ये ख्वाब था मेरा
और तु मुझे छोड़ अब बम्
फोडता मिलता है .....
मैने सोचा था खुद जलजाऊँ
दुनिया को रौशनी देकर
तुने जलाना ही छोडकर मुझे
बस बमें फोडता हैं.....”