शनिवार, 7 जनवरी 2017

मालती माधव

आठवीं सदी के संस्कृत कवि भवभुति ने एक
काव्यमय नाटक लिखा ...#मालतीमाधव.....
अब च्युंकि इस नाटक के विषयवस्तु पूर्णतः काल्पनिक प्रेम प्रसंग को लेकरके लिखा गया था......

उस समय के विद्वानों न कविे भवभुति कि नाटक को उतना तबज्जौ न देते उनका मजाक बनाया.....

और तब
उनलोगों के लिए कवि भवभुति ने
नाटक के प्रारम्भ मे ही एक श्लोक जोडदिया.....

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ये नाम केचिदिह नः प्रथयन्त्यबज्ञां जाननन्तुते
किमपि तान प्रतिनैष यत्नः ।
उपस्थ्यतोस्ति समकोपि समानधर्मा कालोह्यय़ं
निरवधि विर्पुलाच पृथ्वी ।।■■■

"जो लोग इस ग्रन्थ के लिए मुझे अवज्ञा सूचक
बात कहना चाहेंगे मैं उन्हें बता दुँ यह ग्रन्थ मैने उनके लिए नहीं लिखा हे.....
काल या समय का कोई अन्त नहीं और यह विश्व बहुत विशाल हे...
अतः मेरे समकालीन, समधर्मी कोई  व्यक्ति
बर्तमान मे है अथवा परवर्त्ती समय मे जन्म लेगें
मेरे सारे श्रम उनके लिए है"

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क्या है कहानी ?.......

विदर्भदेश के कुण्डिनपुर नामक राज्य के राजा के 2 मन्त्री देवरात व भुरिवसु ने उनके विवाह पूर्व ही सत्य करलिया था कि
उनके पुत्र पुत्री का परस्परमे विवाह करदेगें...
भविष्य मे
देवरात का माधव नामसे पुत्र तथा भुरिवसु को मालती नाम्नी कन्यारत्न कि प्राप्ती हुई ।
मालती कि सुन्दरता दिनप्रतिदिन बढता चलागया ओर इसबीच कुण्डिनपुर नरेश के एक युवा मन्त्री नन्दन को मालती से एकतरफा प्रेम हौ गया....
नन्दन ने राजा के सामने राजसभा मे ही भुरिवसु से मालती का हाथ माँगलिआ
और राज ने स्वयं भी भुरिवसु को अनोरध किया.....

भुरिवसु व उनकी पत्नी पद्मावती को एक तरफ राजकोप से भय था तो वहीं दुसरी ओर
वचनभंग पाप से वो ततोधिक भयभीत थे....

इस बीच राज्य मे एक वुद्धिमती विदेशी महिला कामन्दकी का आगमन हुआ ....
भुरिवसु ने परस्परको घृणा करनेवाले मालती व माधव को
एक करने का कार्य कामन्दकी को सोंपा ओर उधर स्वयं नन्दन से मालती के विवाह आयोजन मे जुटगये.....
कई प्रयत्नो के बाद एक अकस्मात दुर्घटना से दोनों को एक दुसरे से प्रेम हो गया....
.....
नन्दन से मालती का विवाह
दिनांक समीप आनेपर कामन्दकी के कुट कौशल से प्रेम का जीत होता है.....
माधव मालती का विवाह राज आज्ञा से सम्पन्न होता है

यह है इस नाटक कि मुल विषयवस्तु.....

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