शनिवार, 1 अप्रैल 2017

●●●●अबतक 25●●●●

[[in case you miss it]]
Best note of the year 2014 :-
अबतक 25 😂😂😂

आनेवाले जुन को मेँ 25का हो जाऊँगा । बचपन मेँ इछा करता था कैसे जल्दी जल्दी बड़ा बनजाऊँ ताकि कोई मुझे शता न सके । लेकिन बड़ा बनकर देखा यहाँ तो समाज से लेकर सरकार तक हरकोई शताता हे । बचपन मेँ बो ट्रेलर था हमेँ बताने के लिये कि जीँदेगी मौत के बाद आसान होगी । बचपन मेँ स्कुल जाते वक्त ह्रृदय स्पदंन बढ़जाता था । लगता था जैसे स्कुल का एक एक दिन एक जंग हे और हमेँ जीत दर्ज करना हे । मेँ स्कुली जीवन मेँ एक आम लड़का बना रहा । गणित और अंग्रेजी को मैने हमेशा दुशमन माना और इन्हे पढ़ानेवालोँ के लिये मेरे मन मेँ कोई श्रेष्ठता नहीँ थी । हवा बदलता गया दुनिया बदला मगर आज भी इन दोनोँ से कोई खास लगाव नहीँ हे । स्कुली जीवन ठिकठाक था , मेँ कभी कभी गायक कभी चित्रकार तो कभी अभिनय भी करलिया करता था । हालाकि बहुत कम प्रतियोगिताओँ मेँ मैनेँ भाग लिया हे । दुसरोँ से खुदको छुपाना कोई मेरे बारे मेँ क्या सोचरहा है आदि आदत बनचुका था । पिताजी सोच मेँ पड़गये कि मेरे इस आदत को कैसे बदलेँ ? तभी किसी नेँ कहदिया पासवाले गांव मेँ माईनर स्कुल मेँ नाम लिखवा दो छोरा बदल जावेगा । हम ना ना करते रहे और आखीर मेँ हमेँ हारकर उस स्कुल मेँ जाना पड़ा । यह स्कुल दरसल हमारे पंचायत के चाररस्ते पर था परंतु क्युँ कि हम थे शर्मिले हम मना कर रहे थे और उपर से पांच छह गांव के लड़के पढ़ने आते थे तो हम डर गये थे की हमारी ना जमी तो क्या होगा ? लेकिन यह बदलाव एक तरह से मेरेलिये फायदेमंद रहा । गांव के लड़कोँ मेँ सिर्फ कान्हा ही मेरा अछा दोस्त बना रहा और दुसरे गांव के लड़के अछे दोस्त बनगये । अगले 7 साल यानि कि 12वीँ तक जीवन जैसेतैसे बस चल रहा था । 12वीँ का रिजल्ट खास न था पढ़ने को मन ना था असल मेँ कोलेज हमेँ पसंद न थी । कॉलेज की आवोहवा हमारे लिये फिट नहीँ बैठ रहा था सो हमनेँ छोडदिया । तभी गांव मेँ सुरतवासी श्री राजुभाई जी पधारे । हमेँ पता ना था हमरी तो लगनेवाली हे । माताजी परेशान थी कैसे मुझसे पिछा छुटे ? राजुभाई जी एकदिन घर पधारे लंबे लंबे फेँक रहे थे हम भी जानते थे बांऊसर हे लेकिन छक्का मार ना सके । फिर क्या था ,,, हमेँ छोड़नापड़ा गांव और गांव छोड़कर हम कभी भी खुश न रहे । सुरत वो खुशी कहाँ से देगा जो गांव मेँ होता हे ? गांव मेँ अब तो घुमने पर भी परया परया सा एहसास होता हे । 19साल कि दोस्ती और अपनेपन को 8 साल कि विदेशावास नेँ खत्म करलिया । अब शायद वो फिजां फिर लौटे फिर बो मौसम आये इस जीवन मेँ आगे पतझड़ हि पतझड़ दिखता हे ....

[[इसे आखरीवार February 15, 2014 at 5:01am· मेँ फेसबुक मेँ मेरे द्वारा लिखा गया था]]

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