रविवार, 2 अप्रैल 2017

सबकुछ शिवमय है

#शूद्र

जब मैं अपने दान्त ब्रस कर रहा होता हुँ,स्नान कर रहा होता हुँ
शुद्ध होने कि प्रयत्न कर रहा होता हुँ तब तुम मुझे शूद्र समझना....
जो शुद्ध है वो शूद्र है.....
जिसके तन और मन दोनों ही स्वच्छ हो और
समस्त संसार को साफ सुन्दर रखनेवाला हो
वह शूद्र होता है....
संसार के समस्त बुराईओं को निगल जानूवाला
शूद्र कहलाने लायक है.....
इस हिसाब से भगवान शिव शूद्र है....
च्युंकि समस्त संसार का विष रुपी बुराईओं को अकेले उन्होने ही पान कर लिया था....

संसार में बुराई फैलाना ,जातिवाद फैलाना शूद्र का कार्य नहीं सबको साथ लेकर चलना स्वच्छता का शिक्षा देना उसका कर्त्तव्य बताया गया है.....

#वैश्य

जब मैं जीवन का हिसाब किताब करने लगता हुँ....
कि मेरे जीवन मूल्य क्या है ?
क्या है मेरे लक्ष्य ?
जीवन के हर क्षण का सही इस्तेमाल करना सिख रहा होता हुँ.....
साधो !!!!!!!!!
तुम मुझे वैश्य समझना.....
ओडिआ भागवत में एक पद है.....

"धन संचये चर्म करि
स्वभावे तर नरहरी"

जब मैं धर्म के लिए धन का संचय कर रहा होता हुँ तब मुझे वैश्य कहाजाय......
ओर मानव धर्म होता जनकल्याण ....
जो वैश्य है उसका परम कर्त्तव्य है
वह मानवसेवा रुपी अपने धर्म का पालन करने हेतु धन संचय करे ......और उस धन का इस्तेमाल समाज के हित मैं व्यय करे
तभी उसे वैश्य कहा जाएगा......
इसलिए भगवान शिव वैश्य है......
स्वयं देवादी देव महादेव  होकर भी वे निर्धन सा रुप धारण कि हुए होते है....
च्युंकि उन्होने अपना समस्त शक्ति तथा ज्ञानरुपी धन देवता मानव दानवों में बाँटदिया......
लेकिन उनके पास न तो धन का घंमड शेष बचा न ही दानी होने का अहंकार....

#क्षत्रिय
जब में सत्य के साथ रहकर पाप तथा पापीओं के खिलाफ संखनाद कररहा होता हुँ....
मेरे शरीर के अंतिम रक्तकण बह न जाने तक
मेरा पापीओं के खिलाफ युद्ध जारी रहता है....
जब मैं आततायीओं से साधुओं की रक्षा कर रहा होता हुँ......
जब में
दुसरों के दुःखों को अपना समझकर उनके लिए बिना लाभहानी के चिंता किए
लढता रहता हुँ
जब धर्म कि रक्षा के लिए मेरे हतियार थरथराने लगते है तब.....हाँ....तब तुम मुझे क्षत्रिय समझना.......
तो इस नाते भगवन शिव क्षत्रिय है....
उन्होने विभिन्न युगों में पापीओं के विनाश हेतु 21 अवतार लिया...
कई भयानक राक्षस जो साधुओं के लिए काँटे के समान थे उनका विनाश शिवजी ने किया था.....

#ब्राह्मण

जब मेरे मन मे सात्विक भाव उत्पन होते....
जब मुझे समस्त संसार उसमें रहनेवाले सभी प्राणीओं में ब्रह्म का दर्शन होने लगता है....
जब मैं वसुधैव कुटुम्बकम् यानी समस्त संसार मेरा परिवार मानने लगता हुँ....
देव !!!! तुम मुझे ब्राह्मण समझना......
*ब्रह्मम् जानति इति ब्राह्मण*.....
जो ब्रह्म को जान ले वह ब्राह्मण कहलाएगा....
जिसे जल स्थल आकाश दशों दिशाओं मे ब्रह्म ही ब्रह्म दिखे वही ब्राह्मण है.......
संसार में ब्राह्मण का कर्त्तव्य
ज्ञानार्जन कर उस ज्ञान को समाज के हर वर्ग के योग्य व्यक्तिओं में बांटने को बताया गया है.....
अर्थात् सत् धर्मयुक्त ज्ञानी व्यक्ति ब्राह्मण कहलाने योग्य है.....
अतः आसुतोष सदाशिव ब्राह्मण है....
च्युंकि एक ब्रह्मज्ञानी परम बेत्ता सतपुरुष ब्राह्मण
ही अज्ञान रुपी विष को पचा सकते है....
संसार के प्रत्येक प्राणी निर्जिव को ब्रह्म
समझकर जो उनका दुःख स्वयं पर ले लेता हो
केवल वही ब्राह्मण कहलाने के लायक है

सो हे मानव !!!! स्व जाति को लेकय घमंड न कर.....
च्युंकि समस्त जगत शिवमय है....
तुम्हारा प्रारम्भ शिव से अंत भी शिव में ही हो जाना है....

●●●●●हर हर महादेव शम्भु शंकर●●●●●●

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