शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

हम हल्दी खोदने गये हमें आलु मिला.......

मोदीजी ने हम प्राइवेट मजदुरों को 2 माह के लिए वेरोजगार बनादिया है ।

खैर इन एज् अफ नोटबंदी एंड कैसलेस में  घर बैठे बैठे जब पिछवाडा पिराने लगा ......

हाथ पैर दर्द करने लगे मनमें विद्रोह के आग जलने लगे कलम क्रान्ती के लिये पुकारने लगा......

तभी हाँ तभी माताजी ने
खेतों से हलदी खोदने का फरमान् जारी कर दिया ।

कहाँ मैं चे गुवारा बनकरकै फेसबुक में क्रान्तिकारी लेख लिखने कि सोच रहा था ओर मुझे मिट्टी खोदने को कह दियागया ।

ये बिलकुल वैसा ही है जैसे रामचन्द्रजी को गंगुधोवीका काम दे देना ।

खैर
वैमन से मैं हथियार उठाए खेत हो लिया ....

एक आद छोटेमोटे खरोच,2 भवंरो के काटने तथा एक काँटा घुसने के बाद हलदी खोदने में मजा आने लगा ........

कठोर पथरिली मिट्टी मे उगाएगये हलदी
बिना टुटेफुटे अक्षत अवस्था मे खोद निकालना भी अपने आप में एक कला है ।

हमारा वो खेत वर्षों से हलदी उगाने के लिए ही इस्तेमाल होता आया है ।

मैं मजे मजे में खोदता गया ओर खोदता गया ......

तिन बस्ता भरजाने के बाद भी मैं खोदै जा रहा था....

मन में आया मैं मिट्टी नहीं फेसवुक में किसी का वाल खोद रहा हुँ .....

दोपहर होने को था
फिर मुझे भुख भी लगने लगा था
मैने खुदाई को ब्रेक देने को सोचा .....

चलो एक आखरीवाला खोद लिया जाए बाकी बचे कल खोदुगें....

तभी
दिन का अन्तिम म्हार खोदते
वक्त एक देशी आलु मिला ......

मारे देशभक्ति के उसे उपर उछाला गया मानो ये वार्ल्डकप हो ओर मैने कोई महत्वपूर्ण विकेट ले लिया हो 😂😂😂😂 तब सहसा भक्तिभाव से हृदय गदगद हो चला .....

मैने उस #भूमिपुत्र को अंतिम प्रणाम पूर्वक जमिन में पुनः गाडदिया ।

विदेशी आलु खा खा कै हमारा दिल से दाल तक सब के सब फरेनर जैसा हो गया है ।

हे महान आत्मा देशी आलु तुम बचे रहो मैं तुम्हे नहीं खाउगाँ .....

तुम याद दिलाने को जीवित रहना धरोहर बनकर कि में मनोज हुँ मार्टिन नहीं......

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