कवि तेरी कलम कि खामोशी
शायद तेरे दिल के घाव भरगये
या वो संवेदी दिल मरगया....
तु खामोश हे किसी द्वन्द में
उलझा है जीवन कि उलझन में
या साधा कागज से डरगया......
तेरे शब्द हुए क्या अर्थहीन
वक्त के साथ तु हुआ अज्ञान
या दिल में भाव अभाव हुआ......
कवि तु थका तो नहीं है
चुप है क्युं
कलम से श्याही खत्म तो नहीं है
या जग वैरागी हो गया
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें