अब ईश्क है सिर्फ बिवि से
और बच्चोँ से है लगाव
जात धर्म और ज्ञाती कुटुम्ब के झमेलोँ मे सब
माटी , माँ को भूल गये
अब सुख चैन है धन से ही
धन लाए
धन से खाए
धन उडाए
मौज मनाएँ
धन के लिए
धरती को भी भूल गये
अब सुख के पिछे दौड़ते है
नहीँ देश के लिए मरते है
दो दिन कि देशभक्ति से
देशप्रेमी वे बनगये
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