"ऐ बाबुमोशाय हम तो रंगमँच की कठपुत्तलियाँ है जिसकी डोर उपरवाले की हाथ मेँ है"
"जबतक जैसे नचाएगा
नाचते रहेगेँ
पर हाँ
जबतक रहेगेँ
पड़ोशीओँ का सुखदुःख फेसबुक पर बाँटते रहेगेँ "
"कभी उनके अहंकार का मजाक बनाकर तो कभी उनके दुःख पर मरहम लगाकर"
"उनके दिखावे और नौटंकी पर हमारा व्यंग्यं घाव पर मिर्ची सा लगे तो तरकारी मेँ तड़का लगे न लगे जीँदेगी मेँ तड़का लग ही जाता है "
"बाकी ये तो सबके सब कुत्ते के दुम है कभी न सुधरनेवाले भला किसीके समझाने भर से क्या समझेगेँ "
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