गुरुवार, 14 अप्रैल 2016

पडोसी

"ऐ बाबुमोशाय हम तो रंगमँच की कठपुत्तलियाँ है जिसकी डोर उपरवाले की हाथ मेँ है"

"जबतक जैसे नचाएगा
नाचते रहेगेँ
पर हाँ
जबतक रहेगेँ
पड़ोशीओँ का सुखदुःख फेसबुक पर बाँटते रहेगेँ "

"कभी उनके अहंकार का मजाक बनाकर तो कभी उनके दुःख पर मरहम लगाकर"

"उनके दिखावे और नौटंकी पर हमारा व्यंग्यं घाव पर मिर्ची सा लगे तो तरकारी मेँ तड़का लगे न लगे जीँदेगी मेँ तड़का लग ही जाता है "

"बाकी ये तो सबके सब कुत्ते के दुम है कभी न सुधरनेवाले भला किसीके समझाने भर से क्या समझेगेँ "

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