गुरुवार, 7 अप्रैल 2016

श्रौता

कुछ लोग खुदको श्रोता बतला कर मेरे पास आ जाते
उन्हे उम्मिद होता हे उनके लिए
मेँ अपने मुखसे अनाबसनाव बकुगाँ
और इससे उनका भरपूर मनोरंजन हो जाएगा !

इन लोगोँ का मेरे शब्दोँ से कोई लेनादेना नहीँ होता
हाँ
मगर दिखावे के लिए
वो मेरी बातोँ को कुछ वक्तोँ तक बड़े ध्यानसे सुनते है 
और
एकाएक वोल पड़ते
हुँ ,हा ,है
आदि अनैतिक शब्द !

उन्हे मैँ चन्द दिनोँ मे ही बकलोल लगने लगता हुँ

मेरे बातेँ कितना ही श्रेष्ठ क्युँ न हो
उन्हे वह बातेँ  केवल गाय का गोबर बरबार जान पड़ता  है ।

बस इन्ही कारणोँ से कुछ दिनोँ के लिए
फेसबुक मे लिखना छोड़ दिया था ।

अब मेरे विचार ही लोगोँ को 
बकलोली लगने लगा है !!!!

वहीँ मेरे एक भाई ने तो यहाँ तक कह दिया

बाबु काहे माथा पिट रहे
ESSAY लिख रहे
लागत है आप नाही सुधरगेँ

यदि विचारोँ को मनमे मारदेना ही सुधरजाना होता है

मैँ खुदको बिगड़ा हुआ देखना पसन्द करुगाँ

बजाय जीवत हो कर के मरजाना .....

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