"भूमिखण्ड विशेष" या जिसे तुम देश कहते हो वो
मायने रखता है
उसमे रहनेवाले अधिवासी नहीँ
जी नहीँ ....
मैँ ऐसा नहीँ सोचता.....
ये दरसल सत्ता पर काविज़ हर जिम्मेदार बंदे कि सोच है....
एडलफ हिटलर ,
या सद्दाम हुसैन जैसे कट्टर देशप्रेमीओँ कि यही सोच रही थी
यही सोच उत्तरकोरिआ के राष्ट्रपति का भी है....
लाखोँ करोड़ोँ कि बली चढ़ाकर ही सही वो इस धरती
को यह सिख दे रहे कि
'आँस्तिन के साँप'
न कभी अपने हुए थे न हो पाएगेँ
या तो छिपे हुए साँपोँ को कुचल दो
अथवा आँस्तिन को ही जला दो
दिल्ली के बाद
"पाकिस्तान कि जन्मभूमि"
#बंगाल मे
'आज़ाद काश्मीर' की ये नारेवाजी सुनकर
मेरे जैसे तुच्छ भारतीयोँ के मनमे एक अनजाना डर बैठगया है......
क्या 1947 का इतिहास फिर दौहाराया जायेगा ????
या
इस देशमे आगे चलकर
एडलफ् हिटलर या
जैसे किसी एकछत्रवादी
का राज कायम होगा ????
इस प्रश्न का
उत्तर भविष्य के पास है .....
लेकिन बर्तमान को ही यह तय करना है कि
वो भविष्य से कैसा उत्तर सुनना पसन्द करेगा ..... !!!
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