गुरुवार, 1 सितंबर 2016

निषाद

मानव मनमेँ एक बहुत ही विषैला तत्व पैदा होता रहता है
#घृणा

ये इतना ताकतवर है कि
धीरे धीरे जेनेटिकाली
मानव जिँस मे
घुस चुका है ।

अब चलिये 4000साल पुराने जमाने मे चलेँ

आर्यावर्त के पूर्वी भागमे कुछ आर्योँ को मछली खाने का शौक पड़ा

वे नाव बनाने कि कला विकशित करने तथा मछली पकड़ने मे
सिद्धहस्त हो गये ।

समुचे आर्यवर्त मे ताम्रलिप्ती का डंका बजने लगा
फिर क्या था
कुछ लोगोँ को ये गलत लगा
उन्होने इन लोगोँ को निषाद नाम दे दिया

कुछ हजार साल बाद इन पापी  अधम लोगोँ पर राज करने के लिए
कुछ क्षत्रिय आए
ओर एक आद संघर्ष के बाद यहीँ के होकर रहगये
फिर वो जब इन लोगोँ के तरफदारी बचाव मे खड़े हुए

केन्द्रिय सत्ता ने इन क्षेत्रियोँ को  एक नाम दे दिया
पतित क्षेत्रिय
जो बादमे
राजा उड्र के नाम से उड्र जाति कहलाया ।

अगले
1000साल मे
आर्यवर्त के हर ग्रंथ महाभारत रामायण मे
ये निषाद लोग हारते रहे कभी
दूर्योधन के हातोँ निषाद कन्याएं
अपमानित हुइ
कभी कर्ण आया निषादोँ को जीत कर लौटा

4थी ईसापूर्व आते आते
निषाद देश पर
नंदराजवंश राजकरता था
अगले
400 साल मे अशोक राजत्व तक
निषादोँ को घृणा द्वेष का पात्र बनाया गया ।

अबतक निषाद पराधीन होते थे
लोकतंत्रिक शासन से अब उनका लगाव कम हो गया था
उन्हे एक शक्तिशाली राजा नायक कि जरुरत हो रहा था

कौन कौन कौन ?
अन्त मे तलाश खत्म हुए ऐर
प्रमुख का पुत्र महामेघवाह खारबेल को शासक बनाया गया

1म सदी मे विखरे पड़े अशोकान साम्राज्य को एक करके
रोमन्स को धूल चटाके
आर्यावर्त को गौरवानित बनाकर
वो सम्राट फिर संत बनगया ।

5वीँ सदी मे फिर एक निषाद का जन्म हुआ
ययाति (जजाति) केशरी
वो हालाँकि पूर्वी आर्यवत को ही एक करपाया ।
उसने 10000 ब्राह्मणगाँव बसाये

और
उन ब्राह्मणोँ ने फिर भारतीय ग्रथोँ मे उत्कलभूमि की तारिफोँ मे छड़ी लगा दीँ 

वक्त बदलता गया

7वीँ सदी से 17वीँ सदी तक के काल मे आए अनगिनत उतार चढ़ाव के बीच
ये निषाद लोग अब
चीन जापान मिशर युरोप मलेशिया इंडोनेशिया मे व्यापार के साथ
धर्म प्रचार पाली संस्कृत भाषा फैला रहे थे ।
बड़े बड़े मंदिर आज भी उन देशोँ मे निषादलोगोँ कि अन्तिम निशानी के तौर पर जिर्णशिर्ण
पड़ा हुआ है ।
बहरहाल
निषादोँ ने विँधाचंल का घमँट तोड़ दिया !
उत्तर पश्चिम पूर्व आर्यावर्त के साथ दक्षिणी भाग के लोगोँ का
वर्षोँ के टुटे रिस्ते फिर जुड़े

निषादोँ कि पराक्रम से कुछ लोग जल भुन कै बैठे हुए थे

क्या करेँ
क्या करेँ
उन्होने एक पुरातन ऋषि का नाम आगे कर दिया

कहने लगे
पापी नीच दुराचारी
अभागे अनार्य
निषाद नहीँ
ये सब एक अकेल

अगस्य ऋषि कि करामात है
वे सागर को पिई गये
विँधाचंल को झुकादिया
उत्तर दक्षिण को एक करदिया
वगैरा वगैराह !

ये द्वेष कहीँ आपके DNA मे तो नहीँ ?

यदि होगा
आप आज भी हम निषादोँ को
सौतेले मानते होगेँ

सालाचमार कहते होगेँ ।

आपको यदि निषादोँ के देशमे कुछ भी अच्छा नहीँ दिखता हो
और आपका दिल चाहता हो
इनकी जमकर बुराई करुँ
समझ लिजिये
आपके DNA मे
ये प्राचीन द्वेष घृणा वाली गुण
आज भी है ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें