रविवार, 25 जून 2017

कौन है संस्कृत के हत्यारे


मुस्लिम शासकों द्वारा फ़ारसी को राजभाषा बनाए जाने से पहले संस्कृत भारत का राष्ट्र भाषा था

आधिकारिक भाषा के रूप में फारसी और फारसी के साथ 800 से अधिक वर्षों के संपर्क के परिणामस्वरूप,
उत्तर भारतीय भाषाओं ने फारसी से बड़े पैमाने पर शब्द उधार लिया और खुद को बदल दिया।

लेकिन दक्षिण ने अभी भी संस्कृत का उपयोग बरकरार रखा था,
और कर्नाटिक संगीत फारसी से प्रभावित नहीं था, इसलिए 18 वीं शताब्दी तक कर्नाटक संगीत ने संस्कृत में अपना सफर जारी रखा, दक्षिण में कई भाषाई शुद्धतावादी आंदोलन आए ।
इससे लोगों ने संस्कृत से द्रविड़ भाषाओं में अधिक लिखना शुरू कर दिया  (हालांकि संस्कृत अभी भी पर्याप्त था ओर ऐसा ओडिशा में भी हो रहा था)।

इस बीच उत्तर में हिंदुस्तानी भाषा का उदय हुआ, जो मुख्यतः फारस-अरबी नके देर इंडो आर्यन भाषा तथाशैलीओं से विशेष रूप से प्रभावित था ।

देहलावी, जिसे उर्दू कहा जाता है आम जनता की  भाषा बनगयी या जबरदस्ती बनायी गयी थी लेकिन कई कठोर सुगम बोली जाने वाली भाषाओं को एक साथ हिंदी कहा जाता था, जो देहली से अलग था....ये भाषाएं गांवों में बोली जाती थी...

उत्तर भारत में संस्कृत अब एक सुगम भाषा नहीं थी, जबकि एक भाषाई आंदोलन के कारण केरल में और तमिल अभिजात वर्गों में एक सुगम भाषा बन गई थी,
संस्कृत का सीधे द्रविड़ भाषा में कठोर मिश्रण हुआ है, जिसमें आकृति विज्ञान, व्याकरणिक और लेक्सिकल परिवर्तन शामिल है (लेकिन सरल ऋण नही हैं)
परंतु जैसा कि शुद्धता आंदोलन शुरू हुआ, जिससे लोगों ने अपनी भाषा के अधिक मानकीकृत संस्करणों पर तबज्जौ देना शुरू करदिया....

केरल ने संस्कृत के बहुत से शब्दों का इस्तेमाल किया, क्योंकि केरल में कई भारतीय पोर्ट हुआ करते थे सो राष्ट्रीय भाषा होने के कारण
संस्कृत के कई शब्द प्राचीन काल से ही स्वाभाविक रूप से इस्तेमाल किया जा रहा था...

लेकिन तमिलनाडु के लोगों ने देखा
कि उनकी भाषा संस्कृत के साथ संपूर्ण संगत नहीं थी, और यह कि कुछ जगह पहले ही अस्तित्व में थी, जहां कोई संस्कृत नहीं था, इसलिए उन्होंने "संस्कृत को शुद्ध करना" प्रारम्भ कर दिया
वो अब मूल द्रविड़ शब्द व्यवहार करने लगे ।

वहीं
तेलुगू ओर ओडिआ यानी कलिगांन् भाषा बहुत ही संस्कृत जैसा था, यहां तक ​​कि कन्नड़ भी था, लेकिन मलयालम में संस्कृत का उतना प्रभाव नहीं पडपाया ....

उत्तर में, इस बीच, उर्दू-हिंदी विवाद जोर पकडने लगी
और देहलावी को उर्दू और हिंदी में विभाजित किया गया,
भारत आर्यन (खड़ीबोली) की देहली भाषा के लिए नई हिंदी स्थिति स्थापित कि गयी

उर्दू में फारस अरबी शब्दार्थ के रूप में, उत्तर भारत के लोगों ने अपनी भाषा को शुद्ध करने के लिए भी सोचा, जिसके परिणामस्वरूप डीहॉलवी ने एमएस हिंदी बनाने के लिए संस्कृत से पुनः कुछ शब्द उठाया ओर सामिल करलिया

और अच्छी तरह से ज्ञात राजनीतिक और सांप्रदायिक तुष्टीकरण एजेंडा के कारण, संस्कृत को उद्देश्यपूर्ण रूप से निराश किया गया और एमएस हिंदी नामक कृत्रिम भाषा को लागू किया गया था.....

वहीं दक्षिण में तमिलनाडु द्वारा ग्रंथ लिपि को नष्ट कर दिया गया था....

उत्तर में एमएस हिंदी के लागू होने के साथ, वास्तविक भाषा संस्कृत कभी भी वापस जीवित नहीं हो पायी
क्योंकि मिस हिंदीजी
संस्कृत पर हावी होती गयी
तो मिस् हिंदी नें संस्कृत को मारदिया

तमिलों ने संस्कृत की उपेक्षा की

और हमारे कुछ भाई सोचते हैं कि उन्हें सीधे फारस और अरब से आयात किया गया है, इसलिए वे संस्कृत भी नहीं बोलते हैं
ओर इस तरह
भारतीयों ने  संस्कृत को मार दिया

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