पुरुषोत्तमपुरीमें एक पंडित जी थे
काशी रिटर्न ....
एक बार पंडिताइन नदीमें नहाने जा रही थी
जाते वक्त उनको कहगयी
चूल्हे पर दुध बिठाऐ नहाने जा रही हुं
ध्यान देना कहीं ऊबल न जाए
इतना कहके पंडिताइन नहाने चलीगयी ...
पंडित जी शास्त्र अध्य्यन करते हुए
हांडि पर भी नज़र रखे हुए थे
कुछ देर बाद स्वभावत: दुध ऊबलने लगा
पंडित जी ने सोचा ये सब अग्नि देव के कोपके वजह से हो रहा है
उन्होंने शास्त्र में से कई मंत्रों के जरिए
उनको शांत करना चाहा
परंतु दुध ऊबलता रहा
फिर उन्होंने सोचा शायद वे गलत देवता को ध्यान कररहे थे
तो पंडित जी वरुण देव का स्तुति गान करने लगे लेकिन कौनो फायदा नहीं हो रहा था
दुध अब भी ऊबल रहा था
इतने में पंडिताइन आ गयी
उन्होंने देखा पंडित जी ध्यान मुद्रा में मंत्रोच्चारण पूर्वक देवता आवाहन में लगे हुए है
फिर पंडिताइन ने
चूल्हे से आग कम् करते हुए दुधमें थोडा पानी डाल दिया ओर सब ठिक् ठाक् हो गया....
पंडित जी दूर से ये सब देख रहे थे
अबतक पंडित जी पंडिताइन को महामूर्ख समझते हुए उनका सर्वथा अनादर करते आ रहे थे
लेकिन इस घटना के बाद उनके सोचमें
बडे बदलाव देखेगये....
सच है
#व्यावहारिक_ज्ञान_तथा_प्रयोगात्मक_विद्या_के_बिना_पोथीज्ञान_निरर्थक_ही_है
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