जब मैँ माता काली का यह चित्र देखता हुँ
मेरे मनमे कई विचार उत्पन होते है
मानो चित्रकार नारीओँ को कह रहा हो बिषैले पुरुषोँ पर विजय पाना हो तो अपने क्रोध को शान्त मुख के पिछे छिपाये रखो
जिभ :- उन्हे अछा अछा खाद्य खिलाओ
त्रिशुल खड्ग :- दरकार होने पर उनपर झाड़ु बेलन चलाओ
गले मे मुण्डमाला :- हे माता तुम्हारे सहस्र भ्राता पुत्र पिता प्रेमी है वो गुलाम ही है उनका इस्तेमाल तुम अपने पति को कंट्रोल मे लाने के लिए करते रहना !
योगीनीआँ :-
तुम अकेली नहीँ हो लढ़ो विषैले पुरुषोँ के खिलाफ
तुम्हारे पिछे समुचा नारी समाज खड़ा है खड्ग Sorry sorry झाड़ु लिए
मुण्ड और रक्त पात्र :-
और गर फिर भी पति न वाज आये
तो कोई और पुरुष कि तलाश मे निकलो
अन्ततः उसे फाँसकर खुदको सती साबित करने के लिए
वह बंदे का वली देकर अपना
कार्य सिद्ध करो
रक्तपात्र व नग्नता :- पति का दिल जीतने के लिए
अपना मन ही नहीँ तन भी दान कर दो !
रक्त जैसी दिखनेवाली लाल वियर पिलाओ ताकी बिषैला पुरुष तुम्हे त्याग पर नारी गमन ना करेँ !
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