बुधवार, 23 मार्च 2016

एक बेनामी अन्तहीन कविता

#जिँदेगी क्या है
धूल सांज कि
आज यहाँ है
कल न होगा
जिओ ऐसे
नैक दिलीसे
जैसे कल को तुम्हे
न पस्ताना होगा

#पश्च्याताप का
अश्रु पवित्र है
पापी हृदय़ भी
धुल जावत है
पापी नहीँ
सारे पाप गलत होते है
इंसान नहीँ
उसके स्वार्थ गलत होते है

#स्वार्थ पिता पुत्र को
दे लढ़ाए
देश धरम भी
बँटजाएँ
स्वार्थ के बस
जो नर हुआ
मिला है कौड़ी
जब चला बद्दुआँ
भर भर ले गया

#कौड़िओँ के भाव
बिकते है युवा
बने है मोहरे
राजनेता के
समझदार को
क्या समझना
बिना पढ़े जो
समझगया है

#समझदार जी
उसे नहीँ कहते
शत्रृ का साथ
जो देता हो
कुलनाशी
और
भातृहत्यारा
नैक नहीँ
यह सभी व्यक्ति
चाहेँ जितना वे पढ़े होँ

#पढ़त पढ़त
न पण्डित भैयो कोई
प्रीत न जाने
वो मूरख समान
कह गये है
कवीर दासजी
हम कहे क्युँ जलते हो




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