सहिष्णुता ये नहीँ
कि दुनिया
भर के साँप बिच्छुओँ और दरिँदोँ को जिँदेगी बख्स दुँ
उन्हे
दुसरोँ को काटने को खुला छोड़ दुँ
ऐ दुनिया तु जान ले
ये नहीँ है वीसवीँ सदी
न चलेगेँ अहिँसा के वे पुराने नियम
न ही है उन्हे बतलानेवाला कोई गाँधी
आज चाहिये तुम्हे मुझे हस सबको
सुभाष ,आजाद् ,भगत्
जैसे युवकोँ कि जरुरत
और उनकी क्रान्ति....
आजाद उसे नहीँ कहते
जो गरियाता हो
मातापिता को
देश ,जात को
वो आजद नहीँ विमार कहलायेगा
और जाते जाते दुसरोँ मे
जंग छिडाए जाएगा
क्रान्ती वो नहीँ ला सकते
जो किसी के बहकावे मे बहक जाते हो
वो मोहरे बनेगेँ बाद मेँ
और जब जरुरत न होगी
चालोँ
कि
दुत्कार दिए जाएगेँ
किताबोँ को जलाए
जो क्रान्ति हो चाहते
मोहरे हि रहगये
तुम
पढ़ते कुछ बनजाते
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