भगवन शिवजी को अतिप्रिय #उपविष तत्ववाला जैविक पारा के नामसे प्रशिद्ध औषधीय #मदार वृक्ष से संभवतः आप परिचित होगेँ ।
#महाभारत के आदिपर्व मे उपमन्यु कथा आता है
इसमे गुरुआज्ञा से जंगल मे गाय चराने गये धौम्य शिष्य
क्षुधाज्वाला से पीडित उपमन्यु #अर्क का पत्ता खा लेता हे जिससे वो अंधा हो जाता है ।
संस्कृत मे इसे #अर्कसस्यम् कहाजाता है जबकी हिन्दी की आम वोलचाल के भाषा मे #आक अधिक प्रचलित पाया जाता है ।
ओड़िआ लोग आक को #अरख Arakha तथा बंगाली #आकोन्दो Akondo कहते है ।
इसी आक या मदार से जुड़ा एक मजेदार किस्सा याद आ रहा है ।
मेरे गाँव का एक ब्राह्मण लौँडे को
सर्दीओँ के दिनो मे एकबार खुजलीवाला चर्मरोग हो गया था !
वेचारा दिन रात बस खुजला खुजला कर परेशाँ हो जाता था !
अब च्युँकि वो 80का दौर था तथा उसके मातापिता गाँव के गरीब तथा पुराने खयालात् के लोग थे इसलिये इस चर्मरोग का दवादारु करनही पा रहा था !
उन दिनोँ गाँव मेँ सोमुचाचा के बड़े भाई इंदरचाचा सबसे इंटेलिजेँट व टेलेँटेड़ व्यक्ति माने जाते थे !
वो ब्राह्मण लोँडा इंदर मिश्र चाचा के शरण मे गया और कहने लगा
'ताऊ जी कौनो दवादारु बतावो इ खुजलन से बहत परेशान है आजकल ! '
इंदरचाचा ने थोड़ा सोचा फिर कहा ....
जा बचुआ आक का दुध लगा
1 दिनमे तेरा खुजली और बिमारी दोनो ठिक हो जावेगेँ !
लौँडे ने ऐसा ही किया B-) B-) B-)
फिर क्या था ....
देशी दवा कि प्रतिक्रिया से और तेज खुजली होने लगी
वेचारा मन ही मन इंदरचाचा को गारियाने लगा छटपटाने लगा ।
किसी ने कहदिया पोखर मेँ स्नान कर ले
वो औँधे मुँह तालाब कि और भागा .....
और सच्ची बताएँ पोखर के पानी मे जाइके उहे चैन मिली...
आज भी इंदरचाचा आक का दवा देते समय विमार लोगोँ को यह किस्सा सुनते है
और कहते
आक एक अचुक औषध है बस उसको सही मात्रा मे लेना
बहुत जरुरी है नहीँ तो जहर का असर घातक हो सकता है ।
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