बुधवार, 16 सितंबर 2015

जले दिल से लिखना था.....

जले दिल से लिखना था
लिखने बैठे कागज जलगया...

आँसुँओँ को शब्द बनकर वहना था आँखोँ से ही वहगया....

फेसबुक मेँ लिखना था शायरी वायरी कुछ करना था..,

जब जब आये देख राजनीति
यहाँ दम मेरा घुट गया....

सोचा कि लिख दुँ कवितायेँ
और अखबार मेँ छपवा दुँ.....

जब जब भेजा छपा नहीँ
सब कुडेदान मेँ पाया गया....

दिल किया कि लिख दुँ पहलवान के यहाँ दिवार पर....

करते थे पसंद उ की बहन को और दिवाना पहलवान बनगया...

गाने लगे गाना बनाकर जब
गाँव देहात कसब्बो मेँ

वतियाने लगे लोग देखो एक और पागल दिवाना बनगया.....,

वाप परेशाँ हमसे माँ कोढ़ने लगी है अब हमेँ यारोँ....

लगता है डुबे नाव या तैरेँ का वक्त अपना आ गया....

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