ये आखरी शाम ये आखरी रात हे..,
मेँ क्युँ करु फिकर कल की मुझे इस पल मेँ ही जीना हैँ...,
अकेला हुँ आज मेँ नहीँ चाहिये और कोई युँ तो मिले थे कई दोस्त मगर अब चाँद हमारे साथ है !
मुझे जीनाँ है हर पल मेँ आज और ये पल भी बीत जाना है..
जो करते फिकर कल की उन्हे मन ही मन मेँ रोना है..,,
! ये आखरी शाम ये आखरी रात है,..,,,
क्या फायदा जी कर हजारोँ साल मुझे क्युँ की जीँदेगी जीनेँ के लिये सच्चाई का एक पल ही काफी है
(14 sept 2013 हिन्दी दिवस पर लिखागया )
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